Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. २२ : सू. ३१६-३१९
क्या वे जीव संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से उपपन्न होते हैं? असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से उपपन्न होते
गौतम! संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से उपपन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से भी यावत् उपपन्न होते हैं (भ. २४/१४५)। (पहला गमक) ३१७. भन्ते! (असंख्यात वर्ष की आयु वाला यौगलिक) संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव
जो वाणमन्तर-देव में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले वाणमंतर-देव के रूप में उपपन्न होता है? गौतम! जघन्यतः दस-हजार-वर्ष की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः पल्योपम की स्थिति वाले वाणमंतर-देव के रूप में उपपन्न होता है। शेष पूर्ववत्। नागकुमार-देव के उद्देशक की भांति (भ. २४/१४७) यावत् काल की अपेक्षा से जघन्यतः दस-हजार-वर्ष-अधिक-सातिरेक-कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः चार पल्योपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक
गति-आगति करता है। (दूसरा गमक) ३१८. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-(यौगलिक)) जीव जघन्य काल की स्थिति वाले वाणमन्तर-देवों में उपपन्न होता है। नागकुमार-देवों के द्वितीय गमक (भ. २४/१४८) की भांति वक्तव्यता। (तीसरे से नवें गमक तक) ३१९. वही (असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-(यौगलिक)) जीव
उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले वाणमन्तर-देवों में उपपन्न होता है, जघन्यतः एक पल्योपम स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी एक पल्योपम स्थिति वाले वाणमन्तर-देवों में उत्पन्न होता है। वही वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-स्थिति जघन्यतः एक पल्योपम, उत्कृष्टतः तीन पल्योपम। कायसंवेध–जघन्यतः दो पल्योपम, उत्कृष्टतः चार पल्योपम–इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। मध्यवर्ती तीनों ही गमक (चौथे, पांचवें
और छटे) की नागकुमार (भ. २४/१५०) के अंतिम तीन गमक की भांति वक्तव्यता, जैसा नागकुमार-उद्देशक (भ. २४/१५१) में कहा गया, केवल इतना विशेष है-स्थिति और कायसंवेध यथोचित ज्ञातव्य है। इकहत्तरवां आलापक : वाणमन्तर-देवों में संख्यात वर्ष की आयुवाले संज्ञी-तिर्यञ्च
जीवों का उपपात-आदि संख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी-तिर्यञ्च-जीव वाणमन्तर-देव में उपपन्न होता है। नागकुमार की भांति वक्तव्यता। (भ. २४/१५२,१५३), केवल इतना विशेष है-स्थिति और अनुबंध-जघन्यतः दस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः एक पल्योपम। कायसंवेध–दोनों
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