Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. २० : सू. २८४-२९१ से उत्पन्न होते हैं यावत् स्तनितकुमार-भवनपति-देवों से उत्पन्न होते हैं? ।
गौतम! असुरकुमार-भवनपति-देवों से यावत् स्तनितकुमार-भवनपति-देवों से उत्पन्न होते हैं। २८५. भन्ते! असुरकुमार-देव, जो पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है? गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व आयु वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है। असुरकुमारों की लब्धि नौ ही गमकों में पृथ्वीकायिक में उपपद्यमान की भांति वक्तव्य है (भ. २४/२०७-२१०)। इसी प्रकार यावत् ईशान-देव की लब्धि की वक्तव्यता (भ. २४/२११-२१९)। भव की अपेक्षा से सर्वत्र उत्कृष्ट
आठ भव-ग्रहण, जघन्यतः दो भव-ग्रहण। स्थिति और कायसंवेध यथोचित वक्तव्य है। तिर्यञ्च-पञ्चेन्द्रिय में नवनिकाय (नागकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक)-भवनपति-देवों
की उत्पत्ति। २८६. भन्ते! नागकुमार-देव, जो पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होने योग्य है? वही वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-स्थिति और कायसंवेध यथोचित वक्तव्य है। इसी
प्रकार यावत् स्तनितकुमार। चौवनवां आलापक : तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय-जीवों में व्यन्तर-देवों का उपपात-आदि २८७. (भन्ते!) यदि वाणमन्तर-देवों से उत्पन्न होते हैं? तो क्या पिशाच-वाणमन्तर-देवों से उत्पन्न होते हैं?
पूर्ववत् यावत्२८८. भन्ते! वाणमन्तर-देव जो पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होने योग्य हैं? इसी प्रकार वक्तव्यता (भ. २४/२८६), केवल इतना विशेष है-स्थिति और कायसंवेध यथोचित
वक्तव्य है। २८९. (भन्ते!) यदि ज्योतिष्क-देवों से उत्पन्न होते हैं?
पूर्ववत् यावत्पचपनवां आलापक : तिर्यञ्च-पञ्चेन्द्रिय-जीवों में ज्योतिष्क-देवों का उपपात-आदि २९०. भन्ते! ज्योतिष्क-देव जो पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होने योग्य है?
पृथ्वीकायिक-उद्देशक की भांति वही वक्तव्यता (भ. २४/२१५)। भव की अपेक्षा नौ ही गमकों में उत्कृष्टतः आठ भव-ग्रहण यावत् काल की अपेक्षा-जघन्यतः अन्तर्मुहूर्तअधिक-पल्योपम-का-आठवां-भाग, उत्कृष्टतः चार-लाख-वर्ष-अधिक-चार-कोटि-पूर्व
और-चार-पल्योपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। इसी प्रकार नौ ही गमकों में, केवल इतना विशेष है-स्थिति और कायसंवेध यथोचित वक्तव्य
छप्पनवां आलापक : तिर्यञ्च-पञ्चेन्द्रिय में वैमानिक-देवों का उपपात-आदि २९१. (भंते!) यदि वैमानिक देवों से पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या कल्पवासी-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं? कल्पातीत-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं?
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