Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २४ : उ. २१ : सू. ३०५,३०६
भगवती सूत्र मनुष्यों में दसवें से बारहवें देवलोक के देवों का उपपात-आदि प्राणत-देवलोक की स्थिति जघन्यतः उन्नीस सागरोपम, उत्कृष्टतः बीस सागरोपम बतलानी चाहिए, आरण-देवलोक की स्थिति जघन्यतः बीस सागरोपम, उत्कृष्टतः इक्कीस सागरोपम बतलानी चाहिए, अच्युत-देवलोक की स्थिति जघन्यतः इक्कीस सागरोपम, उत्कृष्टतः बाईस सागरोपम बतलानी चाहिए, अनुबन्ध-आयुष्य की तरह बतलाना चाहिए, शेष संहनन आदि सहस्रार-देव की तरह बतलाने चाहिए। भव की अपेक्षा जघन्यतः दो भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः छह भव-ग्रहण करते हैं। नौवें देवलोक का (कायसंवेध)-काल की अपेक्षा जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-अट्ठारह-सागरोपम, उत्कृष्टतः तीन-कोटि-पूर्व-अधिक-सत्तावन-सागरोपम-इतने काल रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। इसी प्रकार नौ ही गमकों में वक्तव्य, केवल इतना विशेष है-स्थिति, अनुबन्ध और कायसंवेध यथोचित वक्तव्य हैं। इसी प्रकार यावत् अच्युत-देव तक, केवल इतना विशेष है-स्थिति, अनुबन्ध
और कायसंवेध यथोचित वक्तव्य हैं। प्राणत-देव की स्थिति (बीस सागरोपम) है, उससे तीन गुणा करने पर साठ सागरोपम, आरण-देव की स्थिति (इक्कीस सागरोपम) है, तीन गुणा करने पर तिरेसठ सागरोपम, अच्युत-देव की स्थिति (बाईस सागरोपम) है, उससे तीन गुणा करने पर छासठ सागरोपम (कायसंवेध इस काल के आधार पर बतलाने चाहिए)। नौवें देवलोक में (आनत-देवलोक में) स्थिति और अनुबन्ध दूसरे गमक में जघन्यतः अट्ठारह सागरोपम, उत्कृष्टतः अट्ठारह सागरोपम, तीसरे गमक में जघन्यतः अट्ठारह सागरोपम, उत्कृष्टतः उन्नीस सागरोपम, चौथे, पांचवे और छटे गमक में जघन्य और उत्कृष्ट अट्ठारह सागरोपम, सातवें, आठवें और नवमें गमक में जघन्य और उत्कृष्ट उन्नीस सागरोपम, दसवें देवलोक में (प्राणत-देवलोक की) स्थिति और अनुबन्ध-पहले तीन गमक में जघन्य उन्नीस सागरोपम, उत्कृष्ट बीस सागरोपम, चोथे, पांचवें और छठे गमक में जघन्य और उकृष्ट उन्नीस सागरोपम, सातवें, आठवें और नवमें गमक में जघन्य और उत्कृष्ट बीस सागरोपम। ग्यारहवें देवलोक में (आरण-देवलोक की) स्थिति और अनुबन्ध-पहले तीन गमक में जघन्यतः बीस सागरोपम, उत्कृष्टतः इक्कीस सागरोपम, चोथे, पांचवें और छठे गमक में जघन्यतः और उत्कृष्टतः बीस सागरोपम, सातवें, आठवें और नवमें गमक में जघन्यतः और उत्कृष्टतः इक्कीस सागरोपम। बारहवें देवलोक में (अच्युत-देवलोक की) स्थिति और अनुबन्ध-पहले तीन गमक में जघन्यतः इक्कीस सागरोपम, उत्कृष्टतः बाईस सागरोपम, चोथे, पांचवें और छटे गमक में जघन्यतः और उत्कृष्टतः इक्कीस सागरोपम, सातवें, आठवें
और नवमें गमक में जघन्यतः और उत्कृष्टतः बाईस सागरोपम सडसठवां आलापक : मनुष्यों में अवेयक-कल्पातीत-देवों का उपपात-आदि ३०६. (भन्ते!) यदि कल्पातीत-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या ग्रैवेयक-कल्पातीत-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं? अनुत्तरोपातिक-कल्पातीत-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते
गौतम! ग्रैवेयक-कल्पातीत-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं, अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिक-देवों से भी उत्पन्न होते हैं।
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