Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २४ : उ. २०,२१ : सू. २९१-२९६
भगवती सूत्र गौतम! कल्पवासी-वैमानिक-देवों से उत्पन्न होते हैं, कल्पातीत-वैमानिक-देवों से उत्पन्न नहीं होते। २९२. यदि कल्पवासी-वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं? कल्पवासी-वैमानिक-देवों से यावत् सहस्रार-कल्पोपक-वैमानिक-देवों से भी उत्पन्न होते हैं, आनत- यावत् अच्युत-कल्पोपक-वैमानिक-देवों से उत्पन्न नहीं होते। सत्तावनवां आलापक : तिर्यञ्च-पञ्चेन्द्रिय-जीवों में सौधर्म-आदि-देवों का उपपात-आदि २९३. भन्ते! सौधर्मवासी-देव जो पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होता है? गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहर्त की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व आयुष्य वाले पंचेन्द्रिय-तिर्यगयोनिक-जीवों में उत्पन्न होता है। शेष जैसे पृथ्वीकायिक-उद्देशक के (भ. २४/२१८) नौ गमकों में बतलाया गया था वैसे ही बतलाना चाहिए, केवल इतना विशेष है-नौ ही गमकों में (भव की अपेक्षा से) जघन्यतः दो भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः आठ भव-ग्रहण। स्थिति
और कालादेश ज्ञातव्य है। इसी प्रकार ईशान-देव की भी वक्तव्यता। इसी प्रकार इसी क्रम से शेष सभी यावत् सहसार-देव तक के देवों में उपपात वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-अवगाहना अवगाहन-संस्थान (पण्णवणा, पद २१/७०) की भांति। २९४. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है।
इक्कीसवां उद्देशक मनुष्य-अधिकार २९५. भन्ते! मनुष्य कहां से उत्पन्न होते हैं क्या नैरयिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं? यावत् देवों से उत्पन्न होते हैं? गौतम! मनुष्य नरक-गति से भी उत्पन्न होते हैं यावत् देवों से भी उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार उपपात–जैसे–पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-उद्देशक में वक्तव्य है यावत् (भ. २४/२३८) तमा-पृथ्वी (छट्ठी नरक) नैरयिकों से भी उत्पन्न होते हैं, अधःसप्तमी-पृथ्वी (सातवीं नरक)__-नैरयिकों से उत्पन्न नहीं होते। अट्ठावनवां आलापक : मनुष्य में प्रथम नरक के नैरयिक-जीवों का उपपात-आदि २९६. भन्ते! रत्नप्रभा-पृथ्वी के नैरयिक, जो मनुष्यों में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितनी काल की स्थिति वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है? गौतम! जघन्यतः पृथक्त्व (दो से नौ)-मास की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व आयुष्य वाले मनुष्यों में उत्पन्न होता है। शेष जैसे पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में उपपद्यमान की भांति वक्तव्यता (भ. २४/२४०-२४२), केवल इतना विशेष है-परिमाण-जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय उत्पन्न होते हैं। (कायसंवेध-) जैसे वहां (पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों में प्रथम नैरयिक जीव की उत्पति में) अन्तर्मुहर्त्त-अधिक-दस-हजार-वर्ष कायसंवेध था) (भ. २४।२४१) वैसे ही यहां पृथक्त्व (दो से नौ)-मासअधिक-दस-हजार-वर्ष कायसंवेध करता है। शेष पूर्ववत्।
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