Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. २० : सू. २४५-२४९
२४५. यदि तिर्यग्योनिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं तो क्या एकेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं ? इस प्रकार उपपात पृथ्वीकायिक उद्देशक की भांति वक्तव्य है यावत् - (भ. २४ / १६४, १६५)
सैंतालीसवां आलापक : तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों में पृथ्वीकायिक-जीवों का उपपात-आदि २४६. भन्ते! पृथ्वीकायिक- जीव, जो पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीव के रूप में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है ?
गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व आयुष्य वालों में उत्पन्न होता है ।
२४७. भन्ते ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं? इस प्रकार परिणाम से लेकर अनुबन्ध तक जो स्वस्थान में (पृथ्वीकायिक-जीवों की पृथ्वीकायिक- जीव के रूप में) वक्तव्यता है (भ. २४ / १६७) वही पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों में उपपद्यमान के वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है नौ ही गमकों में परिमाण में प्रतिसमय जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय अथवा असंख्येय जीव उत्पन्न होते हैं । भव की अपेक्षा भी नौ ही गमकों में जघन्यतः दो भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः आठ भव-ग्रहण । शेष पूर्ववत् । काल की अपेक्षा दोनों (पृथ्वीकायिक और संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय - तिर्यग्योनिक) की अपनी-अपनी स्थिति करणीय है ।
अड़तालीसवां आलापक : तिर्यञ्च पञ्चेन्द्रिय-जीवों में अप्कायिक-जीवों से लेकर चतुरिन्द्रिय-जीव तक जीवों का उपपात - आदि
२४८. यदि अप्कायिक-जीवों से पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं..... पृच्छा ? इसी प्रकार अप्कायिक- जीवों की भी वक्तव्यता । इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय-जीवों का उपपात वक्तव्य है। केवल इतना विशेष है सर्वत्र अपनी-अपनी लब्धि की वक्तव्यता है। नौ ही गमकों में भव की अपेक्षा जघन्यतः दो भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः आठ भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा दोनों (अप्कायिक आदि जीव तथा संज्ञी - पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक) की अपनी- अपनी स्थिति सभी गमकों में वक्तव्य है। जिस प्रकार पृथ्वीकायिक-जीवों से तिर्यञ्च-पञ्चेन्द्रिय जीवों में उपपद्यमान जीवों की लब्धि वैसे ही सर्वत्र ( अप्कायिक-जीवों से लेकर चतुरिन्द्रिय-जीवों तक ) सभी गमकों में स्थिति और कायसंवेध यथोचित वक्तव्य है १ ९ ॥ २४९. यदि पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों से पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं? असंज्ञी - पञ्चेन्द्रिय- तिर्यग्योनिक-जीवों से उत्पन्न होते हैं ?
गौतम ! संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों से भी उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी - पञ्चेन्द्रिय- तिर्यग्योनिक-जीवों से भी उत्पन्न होते हैं, जैसा पृथ्वीकायिक-जीवों में उपपद्यमान का भेद बतलाया गया है । यावत् - (भ. २४ / १९२) ।
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