Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. १२ : सू. २१०-२१३ २१०. भन्ते! उन जीवों के शरीर किस संस्थान वाले प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! शरीर दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-भवधारणीय शरीर (जन्म से प्राप्त) और उत्तरवैक्रिय शरीर (बाद में वैक्रिय लब्धि से प्राप्त)। जो भवधारणीय शरीर हैं वे समचतुरस्र-संस्थान वाले प्रज्ञप्त हैं। जो उत्तरवैक्रिय शरीर हैं वे अनेक प्रकार के संस्थान वाले प्रजप्त हैं। लेश्याएं चार। दृष्टि तीनों प्रकार की। तीन ज्ञान नियमतः, तीन अज्ञान की भजना। तीनों प्रकार के योग, दोनों प्रकार के उपयोग-साकार-उपयोग और अनाकार-उपयोग)। संज्ञाएं चार। कषाय चार। इन्द्रियां पांच। समुद्घात पांच। दोनों प्रकार की वेदना। स्त्री-वेदक और पुरुष-वेदक होते हैं, नपुंसक-वेदक नहीं होते। स्थिति-जघन्यतः दस-हजारवर्ष, उत्कृष्टतः कुछ-अधिक-एक-सागरोपम। अध्यवसान असंख्य होते हैं। वे प्रशस्त भी होते हैं और अप्रशस्त भी। अनुबन्ध-स्थिति की भांति वक्तव्य है। भव की अपेक्षा दो भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-दस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः बाईस-हजार-वर्ष-अधिक-सातिरेक-एक-सागरोपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (दूसरे से नवें गमक तक)
इसी प्रकार नौ ही गमक ज्ञातव्य है, केवल इतना विशेष है-मध्यम तीन गमक और अन्तिम तीन गमकों में असुरकुमार-देवों की स्थिति का भेद ज्ञातव्य है। शेष औधिक गमक की तरह लब्धि (प्राप्ति) और कायसंवेध वक्तव्य। सर्वत्र भव की अपेक्षा से दो भव-ग्रहण यावत् नवें गमक तक। काल की अपेक्षा से जघन्यतः बाईस-हजार-वर्ष-अधिक-सातिरेक-एक-सागरोपम, उत्कृष्टतः भी बाईस-हजार-वर्ष-अधिक-सातिरेक-एक-सागरोपम–इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। २११. भन्ते! नागकुमार-देव जो पृथ्वीकायिकों-जीवों में उत्पन्न होने योग्य है? इसी प्रकार वक्तव्यता यावत् (भ. २४/२०६-२१०) भव की अपेक्षा तक, केवल इतना विशेष है-स्थिति-जघन्यतः दस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः कुछ-अंश-कम-दो-पल्योपम। इसी प्रकार अनुबन्ध भी। काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-दस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः बाईस-हजार-वर्ष-अधिक-देशोन-दो-पल्योपम। इसी प्रकार नौ ही गमक असुरकुमार-देवों के गमक के समान वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-स्थिति और काल की अपेक्षा जानना चाहिए। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक। चौतीसवां आलापक : पृथ्वीकायिक-जीवों में वाणमन्तर-देवों का उपपात-आदि २१२. (भन्ते!) यदि वाणमन्तर-देवों से पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या-पिशाच-वाणमन्तर-देवों से उत्पन्न होते हैं यावत् गन्धर्व-वाणमन्तर-देवों से उत्पन्न होते
गौतम! पिशाच-वाणमन्तर-देवों से उत्पन्न होते हैं यावत् गन्धर्व-वाणमन्तर-देवों से उत्पन्न होते हैं। २१३. भन्ते! वाणमन्तर-देव जो पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होने योग्य है? इनके भी
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