Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः भी एक कोटि- पूर्व । शेष पूर्ववत् ।
१९८. भन्ते! यदि मनुष्य से पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं तो - क्या संज्ञी - मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? असंज्ञी - मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ?
गौतम ! संज्ञी - मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, असंज्ञी - मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं । इकतीसवां आलापक : पृथ्वीकायिक-जीवों में असंज्ञी-मनुष्यों का उपपात-आदि ( प्रथम तीन गमक)
श. २४ : उ. १२ : सू. १९७ - २०३
१९९. भन्ते! असंज्ञी-मनुष्य जो पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते ! वह जीव कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होता है ? इस प्रकार जैसे जघन्य काल की स्थिति वाले असंज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक - जीव के तीन गमक, वैसे ही असंज्ञी - मनुष्य के भी औधिक तीन गमक ( गमक एक, दो, तीन ) अविकल रूप में वक्तव्य है । शेष छह गमक वक्तव्य नहीं हैं।
बत्तीसवां आलापक : पृथ्वीकायिक-जीवों में संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - मनुष्यों का उपपात आदि
२००. (भन्ते!) यदि संज्ञी - मनुष्यों से पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - - मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते । २०१. (भन्ते!) यदि संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - मनुष्यों से पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त-संज्ञी - मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? संख्यात वर्ष की आयु वाले अपर्याप्त संज्ञी - मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ?
गौतम ! संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त संज्ञी - मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, संख्यात वर्ष की आयु वाले अपर्याप्त संज्ञी - मनुष्यों से भी उत्पन्न होते हैं । (भ. २४/९३)
( प्रथम तीन गमक)
२०२. भन्ते ! संज्ञी - मनुष्य, जो पृथ्वीकायिक- जीवों में उत्पन्न होने योग्य है, भन्ते ! वह कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होता है ?
गौतम ! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होता है।
२०३. भन्ते! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इस प्रकार रत्नप्रभा में उपपद्यमान संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों की भांति तीनों ही गमकों (पहले, दूसरे और तीसरे ) में लब्धि वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है- अवगाहना – जघन्यतः अंगुल - का - असंख्यातवां-भाग, उत्कृष्टतः पांच सौ धनुष । स्थिति - जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्टतः कोटि-पूर्व। इसी प्रकार अनुबन्ध । कायसंवेध ही गमकों समान वक्तव्य है।
संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों के
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