Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २४ : उ. १,२ : सू. ११५-१२०
भगवती सूत्र ११५. भन्ते! वह ऐसा ही है। भन्ते! वह ऐसा ही है। यावत् संयम और तप से अपने आपको भावित करते हुए विहरण करने लगे।
दूसरा उद्देशक दसवां आलापक : असुरकुमार-देव के रूप में उत्पन्न तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीव ११६. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-भन्ते! असुरकुमार के रूप में जीव कहां से उपपन्न होते हैं क्या नैरयिकों से उपपन्न होते है? तिर्यग्योनिक-जीवों, मनुष्यों और देवों से उपपन्न होते हैं? गौतम! नैरयिकों से उपपन्न नहीं होते, तिर्यग्योनिक-जीवों से उपपन्न होते हैं, मनुष्यों से उपपन्न होते हैं, देवों से उपपन्न नहीं होते। इस प्रकार नैरयिक-उद्देशक की भांति वक्तव्यता (भ. २४/२-६) यावत्असुरकुमार-देव के रूप में पर्याप्त-असंज्ञी-तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों का उपपात-आदि (पहला गमक : औधिक और औधिक) ११७. भन्ते! पर्याप्त-असंज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव जो असुरकुमार के रूप में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते! वह जीव कितनी काल की स्थिति वाले असुरकुमार के रूप में उपपन्न होता है? गौतम! जघन्यतः दस-हजार-वर्ष की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः एक-पल्योपम-के-असंख्यातवें-भाग की स्थिति वाले असुरकुमार के रूप में उपपन्न होता है। ११८. भन्ते! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं? इस प्रकार रत्नप्रभा के गमक
सदृश नौ गमक वक्तव्य हैं (भ. २४/८-५३) इतना विशेष है-(चौथे, पांचवे और छटे गमक में) जब अपनी जघन्य काल की स्थिति वाला (असंज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यकयोनिक-जीव) होता है, तब तीनों ही गमकों में प्रशस्त अध्यवसान होते हैं, अप्रशस्त अध्यवसान नहीं होते।
शेष पूर्ववत्। ग्यारहवां आलापक : असुरकुमार-देव के रूप में असंख्यात वर्ष की आयु वाले (पर्याप्त)
-संज्ञी-तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-(यौगलिकों) का उपपात-आदि ११९. यदि संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से उपपन्न होते हैं तो क्या संख्यात वर्ष की
आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से उपपन्न होते हैं? असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से उपपन्न होते हैं? गौतम! संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से उपपन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से भी उपपन्न होते
(पहला गमक : औधिक और औधिक) १२०. भन्ते! असंख्यात वर्ष की आयु वाला (पर्याप्त)-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्-योनिक (यौगिलक) जो असुरकुमार के रूप में उपपन्न होने योग्य है, वह जीव कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमार के रूप में उपपन्न होता है?
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