Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २४ : उ. १२ : सू. १७८-१८१
भगवती सूत्र में भव की अपेक्षा जघन्यतः दो भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः आठ भव-ग्रहण। शेष चार गमकों (पहला, दूसरा, चौथा और पांचवां) में जघन्यतः दो भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः असंख्येय भव-ग्रहण। तीसरे गमक में काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहुर्त-अधिक-बाईस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः एक-लाख-सोलह-हजार-वर्ष-इतने काल तक रहता है. इतने काल तक गति-आगति करता है। छटे गमक में काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-बाईस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः चार-अन्तर्मुहूर्त-अधिक-अट्ठासी-हजार-वर्ष-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। सातवें गमक में काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त- -अधिक-सात-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः एक-लाख-सोलह-हजार-वर्ष–इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। आठवें गमक में काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-सात-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः चार-अन्तर्मुहूर्त-अधिक-अट्ठाईस-हजार-वर्ष-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। नवें गमक में भव की अपेक्षा जघन्यतः दो भव- ग्रहण करता, उत्कृष्टतः आठ भव-ग्रहण, काल की अपेक्षा जघन्यतः उनतीस- हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः एक-लाख-सोलह-हजार-वर्ष-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। इस प्रकार नौ ही गमकों में अप्कायिक-जीवों की स्थिति ज्ञातव्य है। तेईसवां आलापक : पृथ्वीकायिक-जीवों में तेजस्कायिक-जीवों का उपपात-आदि १७९. यदि तेजस्कायिक-एकेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं? तेजस्कायिकों के विषय में भी वही वक्तव्यता, (भ. २४/१७८) केवल इतना विशेष है-नौ गमकों में लेश्याएं तीन, तेजस्कायिक जीवों का संस्थान सूची-कलाप-संस्थान। स्थिति ज्ञातव्य है (जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन रात्री-दिवस ।) तृतीय गमक (में काल-संवेध)-काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-बाईस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः बारह-रात्री-दिवस-अधिक-अट्ठासी-हजार-वर्ष-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। इसी प्रकार कायसंवेध यथोचित वक्तव्य है। चोबीसवां आलापक : पृथ्वीकायिक-जीवों में वायुकायिक-जीवों का उपपात-आदि १८०. यदि वायुकायिक-एकेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होते हैं?
वायुकायिक-जीवों के तेजस्कायिक-जीवों की भांति नौ गमक वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-वायुकायिक-जीव पताका-संस्थान वाले प्रज्ञप्त हैं। कायसंवेध हजार वर्ष वक्तव्य है। तृतीय गमक में काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-बाईस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः एक-लाख-अट्ठाईस-हजार-वर्ष, इसी प्रकार कायसंवेध यथोचित वक्तव्य है। पच्चीसवां आलापक : पृथ्वीकायिक-जीवों में वनस्पतिकायिक-जीवों का उपपात-आदि १८१. यदि वनस्पतिकायिक-एकेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकों से पृथ्वीकायिक-जीवों में उत्पन्न होते हैं?
अप्कायिकों के गमक सदृश वनस्पतिकायिक-जीवों के नौ गमक वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-वनस्पतिकायिक-जीव अनेक प्रकार के संस्थान वाले हैं। शरीरावगाहना प्रथम तीन और अन्तिम तीन गमकों में जघन्यतः अंगुल-का-असंख्यातवां-भाग, उत्कृष्टतः कुछ
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