Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २४ : उ. १२ : सू. १६८-१७३
भगवती सूत्र गौतम! भव की अपेक्षा जघन्यतः दो भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः असंख्येय भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा जघन्यतः दो अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः असंख्येय-काल-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (दूसरा गमक : औधिक और जघन्य) १६९. वही जघन्य काल की स्थिति वालों में उत्पन्न पृथ्वीकायिक-जीव जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त
की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है। इस प्रकार यह निरवशेष वक्तव्यता है। (तीसरा गमक : औधिक और उत्कृष्ट) १७०. वही उत्कृष्ट काल की स्थिति वालों में उत्पन्न पृथ्वीकायिक-जीव जघन्यतः बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है। शेष पूर्ववत्। यावत् अनुबन्ध तक। केवल इतना विशेष है-जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय अथवा असंख्येय उत्पन्न हो सकते हैं। भव की अपेक्षा जघन्यतः दो भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः आठ भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-बाईस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः एक-लाख-छिहत्तर-हजार-वर्ष-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (चौथा गमक : जघन्य और औधिक) १७१. वही अपनी जघन्य काल की स्थिति में उत्पन्न पृथ्वीकायिक-जीव पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है। वही प्रथम गमक वक्तव्य है (भ. २४/१६६-१६८), केवल इतना विशेष है लेश्याएं तीन। स्थिति-जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः भी अन्तर्मुहूर्त। अप्रशस्त
अध्यवसान वाले होते हैं। अनुबन्ध की स्थिति की भांति वक्तव्यता। शेष पूर्ववत् । (पांचवां गमक : जघन्य और जघन्य) १७२. वही जघन्य काल की स्थिति वालों में उत्पन्न पृथ्वीकायिक-जीव जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है, वही चतुर्थ गमक की वक्तव्यता कथनीय
है। (भ. २४/१७१) (छट्ठा गमक : जघन्य और उत्कृष्ट) १७३. वही जघन्य काल की स्थिति वालों में उत्पन्न पृथ्वीकायिक-जीव उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है, वही वक्तव्यता, केवल इतना विशेष है-जघन्यतः एक अथवा दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्येय अथवा असंख्येय उत्पन्न हो सकते हैं। यावत् भव की अपेक्षा जघन्यतः दो भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः आठ भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त-अधिक-बाईस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः चार-अन्तर्मुहूर्त-अधिक-अट्ठासी-हजार-वर्ष–इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता
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