Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २० : उ. २ : सू. ११-१७ ११. भंते! लोकाकाश में क्या जीव हैं? जीव के देश हैं? इस प्रकार जैसे द्वितीय शतक में अस्ति-उद्देशक (भ. २/१३९-१४५) है, वह यहां भी वक्तव्य है, इतना विशेष है-अभिलाप यावत् भंते! धर्मास्तिकाय कितना बड़ा प्रज्ञप्त है? गौतम! वह लोक में है, लोक-परिमाण है, लोक-प्रमाण है, लोक से स्पृष्ट है, लोक का ही अवगाहन कर अवस्थित है। इसी प्रकार यावत् पुद्गलास्तिकाय की वक्तव्यता। १२. भंते! अधो-लोक धर्मास्तिकाय के कितने भाग में अवगाढ़ है। गौतम! वह धर्मास्तिकाय के कुछ अधिक आधे भाग में अवगाढ़ हैं। इस प्रकार इस
अभिलाप के अनुसार जैसे द्वितीय शतक (भ. २/१४७-१५३) की वक्तव्यता यावत्१३. भंते! ईषत्-प्राग्भारा-पृथ्वी लोकाकाश के क्या संख्येय भाग में अवगाढ़ है?
गौतम! संख्यातवें भाग में अवगाढ़ नहीं है, असंख्यातवें भाग में अवगाढ़ है, संख्येय-भाग में अवगाढ़ नहीं है, असंख्येय-भाग में अवगाढ़ नहीं है, सर्वलोक में अवगाढ़ नहीं है। शेष पूर्ववत्। अस्तिकाय का अभिवचन-पद १४. भंते! धर्मास्तिकाय के कितने अभिवचन प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! अनेक अभिवचन प्रज्ञप्त हैं, जैसे-धर्म, धर्मास्तिकाय, प्राणातिपात-विरमण, मृषावाद-विरमण, इस प्रकार यावत् परिग्रह-विरमण, क्रोध-विवेक यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य-विवेक, ईर्या-समिति, भाषा-समिति, एषणा-समिति, आदान-भांड-मात्र-निक्षेप-समिति, मल-मूत्र, श्लेष्मा, नाक के मैल, शरीर का गाढ़ मैल-परिष्ठापनिक-समिति, मन-गुप्ति, वचन-गुप्ति, काय-गुप्ति-जो अन्य भी इस प्रकार (चारित्र-धर्म के वाचक) के हैं, वे सब धर्मास्तिकाय के अभिवचन हैं। १५. भंते! अधर्मास्तिकाय के कितने अभिवचन प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! अनेक अभिवचन प्रज्ञप्त हैं, जैसे-अधर्म, अधर्मास्तिकाय, प्राणातिपात यावत् मिथ्या-दर्शन-शल्य, ईर्या-असमिति यावत् मल, मूत्र, श्लेष्म, नाक और शरीर का गाढ़ मैल-परिष्ठापनिक-असमिति, मन-अगुप्ति, वचन-अगुप्ति, काय-अगुप्ति-जो अन्य भी
तथा प्रकार के हैं, वे सब अधर्मास्तिकाय के अभिवचन हैं। १६. भंते! आकाशास्तिकाय के कितने अभिवचन प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! आकाशास्तिकाय के अनेक अभिवचन प्रज्ञप्त हैं, जैसे-आकाश, आकाशास्तिकाय, गगन, नभ, सम, विषम, खह, विह, वीची, विवर, अंबर, अंबरिस, छिद्र, शुशिर, मार्ग, विमुख, अर्त, विवर्त, आधार, व्योम, भाजन, अंतरिक्ष, श्याम, अवकाशांतर, अगम,
स्फटिक, अनंत-जो अन्य भी इस प्रकार के हैं, वे सब आकाशास्तिकाय के अभिवचन हैं। १७. भंते! जीवास्तिकाय के कितने अभिवचन प्रज्ञप्त हैं? गौतम! अनेक अभिवचन प्रज्ञप्त हैं, जैसे-जीव, जीवास्तिकाय, प्राण, भूत, सत्त्व, विज्ञ, वेदा, चेदा, जेता, आत्मा, रंगन, हिंदुक, पुद्गल, मानव, कर्ता, विकर्ता, जगत्, जंतु, योनि, स्वयंभू, सशरीरी, नायक, अंतरात्मा जो अन्य भी इस प्रकार के हैं, वे सब जीवास्तिकाय के अभिवचन हैं।
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