Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. १ : सू. ९८-१०२ -सागरोपम, उत्कृष्टतः चार-कोटि-पूर्व-अधिक-चार-सागरोपम–इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (चौथा गमक : जघन्य और औधिक) ९९. वही अपनी जघन्य काल स्थिति में उत्पन्न संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी
-पञ्चेन्द्रिय-मनुष्य नैरयिकों में उपपन्न होता है। वही वक्तव्यता (भ. २४/९५) केवल इतना विशेष है ये पांच नानात्व हैं-१. शरीर की अवगाहना-जघन्यतः पृथक्त्व (दो से नौ)-अंगुल, उत्कृष्टतः भी पृथक्त्व-अंगुल। २. तीन ज्ञान और तीन अज्ञान की भजना ३. समुद्घात-प्रथम पांच समुद्घात (आहारक- और केवलि-समुद्घात को छोड़कर), ४.५ स्थिति और अनुबन्ध-जघन्यतः पृथक्त्व (दो से नौ)-मास, उत्कृष्टतः भी पृथक्त्व-मास, शेष पूर्ववत् वक्तव्य है यावत् भवादेश तक। काल की अपेक्षा जघन्यतः पृथक्त्व-मास-अधिक-दस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः चार-पृथक्त्व-मास-अधिक-चार-सागरोपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (पांचवां गमक : जघन्य और जघन्य) १००. वही (संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-मनुष्य) जघन्य काल की स्थिति वाला नैरयिक हुआ, नैरयिक जीवों में चतुर्थ गमक के समान वक्तव्यता। (भ. २४/ ९९) केवल इतना विशेष है
काल की अपेक्षा जघन्यतः पृथक्त्व-मास-अधिक-दस-हजार-वर्ष, उत्कृष्टतः चार-पृथक्त्व-मास-अधिक-चालीस-हजार-वर्ष–इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति
-आगति करता है। (छट्ठा गमक : जघन्य और उत्कृष्ट) १०१. वही (संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-मनुष्य) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उत्पन्न होता है, वही गमक वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-काल की अपेक्षा जघन्यतः पृथक्त्व-मास-अधिक-एक-सागरोपम, उत्कृष्टतः चार-पृथक्त्व-मास-अधिक-चार-सागरोपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (सातवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक) १०२. वही अपनी उत्कृष्ट काल स्थिति में उत्पन्न संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त
-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-मनुष्य नैरयिकों में उपपन्न होता है। वही प्रथम गमक ज्ञातव्य है (भ. २४/ ९५,९६), केवल इतना विशेष है-१. शरीर की अवगाहना-जघन्यतः पांच सौ धनुष, उत्कृष्टतः भी पांच सौ धनुष २. स्थिति-जघन्यतः कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः भी कोटि-पूर्व। इसी प्रकार अनुबन्ध भी। काल की अपेक्षा जघन्यतः दस-हजार-वर्ष-अधिक-कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः चार-कोटि-पूर्व-अधिक-चार-सागरोपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है।
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