Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. १ : सू. १०६-१०८ और उत्कृष्ट दोनों एक सागरोपम, काल की अपक्षा से कायसंवेध जघन्यतः पृथक्त्व (दो से नौ)-वर्ष-अधिक-एक-सागरोपम, उत्कर्षतः चार-कोटि-पूर्व-अधिक-चार-सागरोपम। ३. तृतीय गमक अधिक और उत्कृष्ट स्थिति–नारक की स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट तीन सागरोपम। काल की अपेक्षा से जघन्यतः पृथक्त्व (दो से नौ)-वर्ष-अधिक-तीन-सागरोपम, उत्कृष्टतः चार-कोटि-पूर्व-अधिक-बारह-सागरोपम। (चौथे से छट्ठा गमक : जघन्य और औधिक, जघन्य और जघन्य, जघन्य और उत्कृष्ट) १०७. वही अपनी जघन्य काल की स्थिति में उत्पन्न संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्य नैरयिकों में उपपन्न होता है। उसकी तीनों गमकों में वही प्राप्ति, केवल इतना विशेष है-शरीरावगाहना-जघन्यतः पृथ्क्त्व-रत्नि, उत्कृष्टतः भी पृथक्त्व-रत्नि। स्थिति-जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष, उत्कृष्टतः भी पृथक्त्व-वर्ष। इसी प्रकार अनुबन्ध भी वक्तव्य है। शेष औधिक की भांति वक्तव्य है। (भ. २४/१०५) कायसंवेध यथोचित वक्तव्य
टिप्पण ४. चतुर्थ गमक-जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-एक-सागरोपम, उत्कृष्टतः चार-पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-बारह-सागरोपम। ५. पञ्चम गमक-जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-एक-सागरोपम, उत्कृष्टतः चार-पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-चार-सागरोपम। ६. षष्ठ गमक-जघन्यतः पृथक्त्व-वर्ष-अधिक-तीन-सागरोपम, उत्कृष्टतः चार-पृथक्त्व
-अधिक-बारह-सागरोपम । (सातवें से नवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक, उत्कृष्ट और जघन्य, उत्कृष्ट और उत्कृष्ट) १०८. वही अपनी उत्कृष्ट काल की स्थिति में उत्पन्न संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्य नैरयिकों में उत्पन्न होता है। उसके भी तीनों गमकों में वही प्राप्ति वक्तव्य है। केवल यह नानात्व है-शरीरावगाहना-जघन्यतः पांच सौ धनुष, उत्कृष्टतः भी पांच सौ धनुष। स्थिति जघन्यतः कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः भी कोटि-पूर्व। इसी प्रकार अनुबन्ध की वक्तव्यता। शेष प्रथम गमक सदृश वक्तव्य है, केवल इतना विशेष है-नैरयिक स्थिति और कायसंवेध (काल की अपेक्षा) के विषय में सप्तम, अष्टम और नवम गमक वक्तव्य है। सप्तम गमक-स्थिति जघन्यतः एक सागरोपम, उत्कृष्टतः तीन सागरोपम । कायसंवेध–जघन्यतः एक कोटि-पूर्व-अधिक-एक-सागरोपम, उत्कृष्टतः चार-कोटि-पूर्व-अधिक-बारह-सागरोपम। अष्टम गमक-जघन्यतः एक सागरोपम, उत्कृष्टतः भी एक सागरोपम, कायसंवेध जघन्यतः एक-कोटि-पूर्व-अधिक-एक-सागरोपम, उत्कृष्टतः चार-कोटि-पूर्व-अधिक-चार-सागरोपम, नवम गमक-जघन्यतः तीन सागरोपम, उत्कृष्टतः भी तीन सागरोपम, कायसंवेध-जघन्यतः एक-कोटि-पूर्व-अधिक-तीन-सागरोपम, उत्कृष्टतः चार-कोटि-पूर्व-अधिक-बारहसागरोपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है।
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