Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २४ : उ. १ : सू. ४८-५४
गौतम ! जघन्यतः दस हजार वर्ष की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी दस हजार वर्ष की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है ।
४९. भन्ते ! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं? शेष उसी प्रकार वक्तव्य है, जैसे सातवां गमक यावत् - (भ. २४/४६)।
५०. भन्ते ! वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्तक - असंज्ञी - पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक- जीव जघन्य काल की स्थिति वाली रत्नप्रभा - पृथ्वी में यावत् (भ. २४/२७) गति - आगति करता है ?
गौतम ! भव की अपेक्षा दो भव ग्रहण करता है, काल की अपेक्षा जघन्यतः दस हजार-वर्ष-अधिक-कोटि-पूर्व, उत्कृष्टतः भी दस हजार वर्ष - अधिक - कोटि - पूर्व- इतने रहता है, इतने काल तक गति आगति करता है ।
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(नवां गमक : उत्कृष्ट और उत्कृष्ट )
५१. भन्ते ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्तक- असंज्ञी - पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव उत्कृष्ट काल की स्थिति वाली रत्नप्रभा - पृथ्वी में नैरयिक के रूप में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते ! वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है ? गौतम! जघन्यतः पल्योपम-के-असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः भी पल्योपम-के-असंख्यातवें भाग की स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है ।
५२. भन्ते ! वे जीव एक समय में कितने उपपन्न होते हैं ? शेष उसी प्रकार वक्तव्य है, जैसे सातवां गमक यावत् (भ. २४/४६) ।
५३. भन्ते ! उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला पर्याप्तक- असंज्ञी - पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव उत्कृष्ट काल की स्थिति वाली रत्नप्रभा - पृथ्वी में यावत् (भ. २४/२७) गति - आगति करता है ?
अपेक्षा से जघन्यतः
गौतम ! भव की अपेक्षा से दो भव ग्रहण करता है, काल की कोटि-पूर्व-अधिक-पल्योपम-का- असंख्यातवां भाग, उत्कृष्टतः भी कोटि- पूर्व-अधिक-पल्योपम-का-असंख्यातवां भाग -इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति - आगति करता है ।
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इस प्रकार ये औधिक के तीन गमक, जघन्य काल की स्थिति वालों के तीन गमक, उत्कृष्ट काल की स्थित वालों के तीन गमक- ये सब नौ गमक होते हैं ।
दूसरा आलापक : नैरयिक में संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों का उपपात-आदि
५४. यदि संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों से आकर उपपन्न होते हैं तो क्या - (वे जीव) संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों से उपपन्न होते हैं ? अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक - जीवों से उपपन्न होते हैं ? गौतम! संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों से उपपन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी - पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक-जीवों से उपपन्न नहीं होते ।
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