Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २४ : उ. १ : सू. ८२-८६
भगवती सूत्र (दूसरा गमक : औधिक और जघन्य) ८२. वही (संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव) जघन्य काल की स्थिति (बाईस सागरोपम) वाली अधःसप्तमी-पृथ्वी में नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है, वही वक्तव्यता यावत् भवादेश तक। कालादेश-जघन्यतः काल की अपेक्षा वही वक्तव्य है यावत् चार कोटि-पूर्व-अधिक-छासठ-सागरोपम-इतने काल तक रहते हैं, इतने काल तक गति-आगति करता है। (तीसरा गमक : औधिक और उत्कृष्ट) ८३. वही (संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव) उत्कृष्ट
काल की स्थिति (तेतीस सागरोपम) वाली अधःसप्तमी-पृथ्वी में नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है, वही प्राप्ति वक्तव्य है यावत् अनुबन्ध तक (भ. २४/८१)। भव की अपेक्षा जघन्यतः तीन भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः पांच भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा जघन्यतः दो-अन्तर्मुहूर्त-अधिक-तैतीस-सागरोपम, उत्कृष्टतः तीन-कोटि-पूर्व-अधिक-छासठसागरोपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (चौथा गमक : जघन्य और औधिक) ८४. वही अपनी जघन्य काल-स्थिति में उत्पन्न संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव नैरयिकों में उपपन्न होता है। वही जघन्य काल की स्थिति वाली रत्नप्रभा-पृथ्वी में उपपन्न होने वाले नैरयिक की (भ. २४/६७) वक्तव्यता यावत् भवादेश तक. इतना विशेष है-प्रथम संहनन- केवल वज्र-ऋषभ-नाराच-संहनन· वाला ही होता है, स्त्री-वेदक उपपन्न नहीं होता। भव की अपेक्षा जघन्यतः तीन भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः सात भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा जघन्यतः दो-अन्तर्मुहूर्त-अधिक-बाईस-सागरोपम, उत्कृष्टतः चार-अन्तर्मुहूर्त-अधिक-छास?-सागरोपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है। (पांचवां गमक : जघन्य और जघन्य) ८५. वही (संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव) जघन्य काल की स्थिति (बाईस सागरोपम) वाली अधःसप्तमी-पृथ्वी में जघन्य काल स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है, वही चतुर्थ गमक (भ. २४/६७) अविकल रूप से वक्तव्य है यावत् कालादेश तक। (छट्ठा गमक : जघन्य और उत्कृष्ट) ८६. वही (संख्यात वर्ष की आयुवाला पर्याप्त-संज्ञी-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव) उत्कृष्ट काल (तेतीस सागरोपम) स्थिति वाली अधःसप्तमी-पृथ्वी वाले नैरयिक के रूप में उपपन्न होता है, वही प्राप्ति वक्तव्य है यावत् अनुबन्ध तक (भ. २४/८१)। भव की अपेक्षा जघन्यतः तीन भव-ग्रहण, उत्कृष्टतः पांच भव-ग्रहण। काल की अपेक्षा जघन्यतः दो-अन्तर्मुहूर्त-अधिक-तेतीस-सागरोपम, उत्कृष्टतः तीन-अंतर्मुहूर्त-अधिक-छास?सागरोपम-इतने काल तक रहता है, इतने काल तक गति-आगति करता है।
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