Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २० : उ. १० : सू. १२१-१२३ १२१. भंते ! इन नैरयिकों के चतुरशीति-समर्जित, नोचतुरशीति-समर्जित-सबके अल्प-बहुत्व
की षट्क-समर्जित की भांति वक्तव्यता यावत् वैमानिक, इतना विशेष है-चतुरशीति
अभिलाप्य है। १२२. भंते! इन सिद्धों के चतुरशीति-समर्जित, नोचतुरशीति-समर्जित, चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? गौतम! चतुरशीति-नोचतुरशीति-समर्जित सिद्ध सबसे अल्प हैं, चतुरशीति-समर्जित उनसे
अनंत-गुणा हैं, नोचतुरशीति-समर्जित उनसे अनंत-गुणा हैं। १२३. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। यावत् विहरण करने लगे।
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