Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. २४ : उ. १ : सू. ४-११
भगवती सूत्र ४. (भन्ते!) यदि नैरयिक-जीव असंज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक जीवों से उपपन्न होते हैं तो-क्या जलचर-जीवों से उपपन्न होते हैं? स्थलचर-जीवों से उपपन्न होते हैं? खेचर-जीवों से उपपन्न होते हैं? गौतम! जलचर-जीवों से उपपन्न होते हैं, स्थलचर -जीवों से भी उपपन्न होते हैं। खेचर-जीवों से भी उपपन्न होते हैं। ५. (भन्ते!) यदि नैरयिक-जीव जलचर-, स्थलचर- और खेचर-जीवों से उपपन्न होते हैं तो क्या पर्याप्तक-जीवों से उपपन्न होते हैं? अपर्याप्तक-जीवों से उपपन्न होते हैं?
गौतम! पर्याप्तक-जीवों से उपपन्न होते हैं, अपर्याप्तक-जीवों से उपपन्न नहीं होते। प्रथम नरक में असंज्ञी-तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों का उपपात-आदि ६. भन्ते! पर्याप्त-असंज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक, जो नैरयिक-जीवों (नरकगति) में उपपन्न होने योग्य है वह कितनी पृथ्वी तक उपपन्न हो सकता है?
गौतम! वह केवल एक रत्नप्रभा पृथ्वी (प्रथम नरक) में उपपन्न हो सकता है। (पहला गमक : औधिक और औधिक) १. उपपात-द्वार ७. भन्ते! पर्याप्त-असंज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक, जो रत्नप्रभा-पृथ्वी में नैरयिकों में उपपन्न होने योग्य है, भन्ते! वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उपपन्न होता है? गौतम! जघन्यतः दस हजार वर्ष की स्थिति वाले, उत्कृष्टतः एक-पल्योपम-के-असंख्यातवें-भाग की स्थिति वाले नैरयिकों में उपपन्न होता है। २. परिमाण-द्वार ८. भन्ते! वे पर्याप्त-असंज्ञी-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीव रत्नप्रभा में एक समय में कितने उपपन्न होते हैं? गौतम! जघन्यतः एक, दो अथवा तीन, उत्कृष्टतः संख्यात अथवा असंख्यात (जीव) उपपन्न होते हैं। ३. संहनन-द्वार ९. भन्ते! उन जीवों के शरीर किस संहनन वाले प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! सेवार्त-संहनन वाले प्रज्ञप्त हैं। ४. अवगाहना-द्वार १०. भन्ते! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी प्रज्ञप्त है?
गौतम! जघन्यतः अंगुल-के-असंख्यातवें-भाग जितनी, उत्कृष्टतः हजार योजन । ५. संस्थान-द्वार ११. भन्ते! उन जीवों के शरीर किस संस्थान वाले प्रज्ञप्त हैं?
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