Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
बाईसवां शतक
पहला वर्ग
पहला उद्देशक संग्रहणी गाथा १,२. ताल, एकास्थिक, ३. बहुबीजक ४. गुच्छ ५. गुल्म ६. वल्ली-बाइसवें शतक के छह वर्ग हैं। प्रत्येक वर्ग के दस उद्देशक हैं। इस प्रकार इन छह वर्गों के साठ उद्देशक होते
ताल-आदि जीवों में उपपात-आदि-पद १. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-भंते! ताल, तमाल, अरणी, तेतली, साल, चीड़, साल-कल्याण, जावित्री, केवड़ा, केला, कंदली (कमलगट्टा), भोजपत्र का वृक्ष, अखरोट, हींग का वृक्ष, लवंग का वृक्ष, सुपारी, खजूर तथा नारियल-इनके जो जीव मूल-रूप में उत्पन्न होते हैं, भंते! वे जीव कहां से (आकर) उत्पन्न होते हैं? इस प्रकार इन जीवों के संदर्भ में भी मूल आदि दस उद्देशक वैसे ही वक्तव्य हैं जैसे शालि-वर्ग के संदर्भ में (भ. २१/१-१४ में) कहे गये हैं, केवल इतना अन्तर है यह नानात्व है-मूल, कंद, स्कन्ध (खंध), त्वक् (त्वचा) और शाखा-इन पांच उद्देशकों में देव उपपन्न नहीं होते। लेश्याएं तीन हैं। स्थिति जघन्यतः अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः दस हजार वर्ष। अंतिम पांच उद्देशकों में देव उपपन्न होते हैं। लेश्याएं चार हैं। स्थिति जघन्यतः अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः पृथक्त्व-वर्ष। अवगाहना मूल और कंद में पृथक्त्व-धनुष, स्कन्ध (खंध), त्वक् (त्वचा)
और शाखा में पृथक्त्व-गव्यूत, प्रवाल और पत्ते में पृथक्त्व-धनुष, पुष्प में पृथक्त्व-हाथ, फल और बीज में पृथक्त्व-अंगुल। सभी की अवगाहना जघन्यतः अंगुल-का-असंख्यातवां-भाग। शेष सालि की भांति जानना चाहिए। इसी प्रकार ये दस उद्देशक हैं।
दूसरा वर्ग नीम-आदि एकास्थिक-वृक्षों में उपपात-आदि-पद २. भंते! नीम, आम, जामुन, कोसम, साल, ढेरा अंकोल, पीलू, लिसोड़ा, सलइ,
शाल्मली, काली तुलसी, मौलसरी ढाक, कंटक करंज, जिया-पोता, रीठा, बेहड़ा, हरड़, भिलावा, वायविडंग, गंभीरी, धाय, चिरौंजी, पोई, महानीम-वकायन, निर्मली, पाशिकावृक्ष (दक्षिण का एक प्रसिद्ध वृक्ष), सीसम, विजयसार, जायफल, सुलतान, चंपा,
७०४