Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २० : उ. ७,८ : सू. ५९-६७
मति - अज्ञान
बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है यावत् केवल - ज्ञान के विषय का बंध, विषय का, श्रुत- अज्ञान के विषय का, विभंग ज्ञान के विषय का, श्रुत- अज्ञान के विषय का, विभंगज्ञान के विषय का - इन सब पदों का बंध तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है। ये सारे चौबीस दंडक वक्तव्य हैं, इतना विशेष ज्ञातव्य है जिसमें जो प्राप्त है यावत्
६०. भंते! वैमानिकों के विभंग-ज्ञान के विषय का बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गौतम! बंध तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- जीव- प्रयोग-बंध, अनंतर बंध, परंपर-बंध । ६१. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । यावत् विहरण करने लगे ।
आठवां उद्देश
समय-क्षेत्र में अवसर्पिणी - उत्सर्पिणी- पद
६२. भंते! कर्म भूमियां कितनी प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! पंद्रह कर्म - भूमियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे- पांच भरत, पांच ऐरवत, पांच महाविदेह । ६३. भंते! अकर्म-भूमियां कितनी प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम! तीस अकर्म-भूमियां प्रज्ञप्त हैं, जैसे -पांच हैमवत, पांच हैरण्यवत, पांच हरिवास, पांच रम्यक्वास, पांच देवकुरु, पांच उत्तरकुरु ।
६४. भंते! इन तीस अकर्मभूमियों में अवसर्पिणी-काल है ? उत्सर्पिणी - काल है ?
यह अर्थ संगत नहीं है ।
६५. भंते! इन पांच भरत, पांच ऐरवत में अवसर्पिणी काल है ? उत्सर्पिणी - काल है ?
हां, है । इन पांच महाविदेहों में अवसर्पिणी-काल नहीं है, उत्सर्पिणी काल नहीं है। आयुष्मान् श्रमण ! वहां काल अवस्थित प्रज्ञप्त है।
पांच महाव्रत-चातुर्याम-धर्म-पद
६६. भंते! इन पांच महाविदेहों में अर्हत् भगवान् पांच महाव्रत, सप्रतिक्रमण धर्म का प्रज्ञापन करते हैं ?
यह अर्थ संगत नहीं है । इन पांच भरत में, पांच ऐरवत में पूर्व और पश्चिम के दो अर्हत् भगवान् पांच महाव्रत सप्रतिक्रमण-धर्म का प्रज्ञापन करते हैं। अवशेष अर्हत् भगवान चातुर्याम धर्म का प्रज्ञापन करते हैं। इन पांच महाविदेहों में अर्हत् भगवान् चातुर्याम धर्म का प्रज्ञापन करते हैं।
तीर्थंकर पद
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६७. भंते! जंबूद्वीप द्वीप में भारत वर्ष में इस अवसर्पिणी में कितने तीर्थंकर प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! चौबीस तीर्थंकर प्रज्ञप्त हैं, जैसे- ऋषभ, अजित, संभव, अभिनंदन, सुमति, सुप्रभ, सुपार्श्व, चंद्र, पुष्पदंत, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनंत, धर्म, शांति, कुंथु, अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व और वर्द्धमान ।
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