Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २० : उ. ६, ७ : सू. ५०-५९ बीच समवहत होता है, समवहत होकर जो भव्य घनवात-तनुवात, घनवात-तनुवातवलय में वायुकायिक- जीव के रूप में उपपन्न होता है। शेष पूर्ववत् यावत् इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - यावत् उपपन्न होता है ।
५१. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है ।
सातवां उद्देशक
बंध- पद
५२. भंते! बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम! बंध तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- जीव - प्रयोग - बंध, अनंतर - बंध, परंपर- बंध |
५३. भंते! नैरयिकों के बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
इस प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता ।
५४. भंते! ज्ञानावरणीय कर्म का बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! तीन प्रकार का बंध प्रज्ञप्त है, जैसे- जीव- प्रयोग-बंध, अनंतर बंध, परंपर-बंध | ५५. भंते! नैरयिकों के ज्ञानावरणीय कर्म का बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
पूर्ववत् इस प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता । इस प्रकार यावत् आंतरायिक-कर्म की
वक्तव्यता ।
५६. भंते! ज्ञानावरणीय कर्म का उदय होने पर बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! पूर्ववत् तीन प्रकार का बंध प्रज्ञप्त है। इस प्रकार नैरयिकों की वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता । इस प्रकार यावत् आंतरायिक कर्म का उदय होने पर बंध की वक्तव्यता ।
५७. भंते! स्त्री - वेद-कर्म का बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! पूर्ववत् तीन प्रकार का बंध प्रज्ञप्त है।
५८. भंते! असुरकुमारों के स्त्री - वेद-कर्म का बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
पूर्ववत् । इस प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता । इतना विशेष है - जिसके स्त्री-वेद है । इसी प्रकार पुरुष - वेद की भी वक्तव्यता, इसी प्रकार नपुंसक वेद की वक्तव्यता यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता, इतना विशेष है - जिसके जो वेद है ।
५९. भंते! दर्शन - मोहनीय कर्म का बंध कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
पूर्ववत् निरंतर यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता । इसी प्रकार चारित्र - मोहनीय कर्म की वक्तव्यता यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता । इस प्रकार इस क्रम से औदारिक- शरीर यावत् कर्म - शरीर, आहार - संज्ञा यावत् परिग्रह- संज्ञा, कृष्ण-लेश्या यावत् शुक्ल-लेश्या, सम्यग् - - दृष्टि, मिथ्या-दृष्टि, सम्यग् - मिथ्या-दृष्टि, आभिनिबोधिक ज्ञान यावत् केवल - ज्ञान, मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान, विभंग ज्ञान, इस प्रकार भंते! आभिनिबोधिक - ज्ञान के विषय का
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