Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. २० : उ. १० : सू. ९५-१०३ ९५. भंते! क्या नैरयिक अपने कर्म से उपपन्न होते हैं? पर-कर्म से उपपन्न होते हैं? गौतम! अपने कर्म से उपपन्न होते हैं, पर-कर्म से उपपन्न नहीं होते। इस प्रकार यावत्
वैमानिकों की वक्तव्यता। इसी प्रकार उदवर्तना-दंडक की वक्तव्यता। ९६. भंते! क्या नैरयिक अपने प्रयोग से उपपन्न होते हैं? पर-प्रयोग से उपपन्न होते हैं? गौतम! अपने प्रयोग से उपपन्न होते हैं, परप्रयोग से उपपन्न नहीं होते। इस प्रकार यावत्
वैमानिकों की वक्तव्यता। इसी प्रकार उद्वर्तना-दंडक की वक्तव्यता। कति-संचित-आदि-पद ९७. भंते! क्या नैरयिक कति-संचित हैं? अकति-संचित हैं? अवक्तव्यक-संचित हैं?
गौतम! नैरयिक कति-संचित भी हैं, अकति-संचित भी हैं, अवक्तव्यक-संचित भी हैं। ९८. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् अवक्तव्यक-संचित भी हैं? गौतम! जो नैरयिक संख्येय-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे कति-संचित हैं। जो नैरयिक असंख्येय-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अकति-संचित हैं, जो नैरयिक एक-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अवक्तव्यक-संचित हैं। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत अवक्तव्यक-संचित भी हैं। इस प्रकार यावत् स्तनितकुमार की वक्तव्यता। ९९. पृथ्वीकायिकों की पृच्छा।
गौतम! पृथ्वीकायिक कति-संचित नहीं हैं, अकति-संचित हैं, अवक्तव्यक-संचित नहीं हैं। १००. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् अवक्तव्यक-संचित नहीं हैं? गौतम! पृथ्वीकायिक असंख्येय-प्रवेशन से प्रवेश करते हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् अवक्तव्यक-संचित नहीं हैं। इस प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक की
वक्तव्यता। द्वीन्द्रिय यावत् वैमानिक की नैरयिक की भांति वक्तव्यता। १०१. सिद्धों की पृच्छा।
गौतम! सिद्ध कति-संचित हैं, अकति-संचित नहीं हैं, अवक्तव्यक-संचित भी हैं। १०२. यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है यावत् अवक्तव्यक संचित भी हैं?
गौतम! जो सिद्ध संख्येय-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे कति-संचित हैं। जो सिद्ध एक-प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, वे अवक्तव्यक-संचित हैं। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है यावत् अवक्तव्यक-संचित भी हैं। १०३. भंते! इन नैरयिकों के कति-संचित, अकति-संचित और. अवक्तव्यक-संचित में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं? गौतम! अवक्तव्यक-संचित नैरयिक सबसे अल्प हैं। कति-संचित उससे संख्येय-गुण हैं। अकति-संचित उससे असंख्येय-गुण हैं। इस प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर यावत् वैमानिकों के अल्प-बहुत्व की वक्तव्यता।
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