Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १९ : उ. ८,९ : सू. १००-१०८ गौतम! उपयोग-निवृत्ति दो प्रकार की प्रज्ञप्त है, जैसे साकार-उपयोग-निर्वृत्ति, अनाकार
-उपयोग-निवृत्ति। इस प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता। १०१. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
नवां उद्देशक करण-पद १०२. भंते! करण कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं? गौतम! करण पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-द्रव्य-करण, क्षेत्र-करण, काल-करण, भव
-करण, भाव-करण। १०३. भंते ! नैरयिकों के कितने करण प्रज्ञप्त हैं? गौतम! पांच करण प्रज्ञप्त हैं, जैसे-द्रव्य-करण यावत् भाव-करण। इस प्रकार यावत्
वैमानिकों की वक्तव्यता। १०४. भंते! शरीर-करण कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! शरीर-करण पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-औदारिक-शरीर-करण यावत् कर्म
-शरीर-करण। इस प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता, जिसमें जितने शरीर प्राप्त हैं। १०५. भंते! इंद्रिय-करण कितने प्रकार के प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! इन्द्रिय-करण पांच प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-श्रोत्रेन्द्रिय-करण यावत् स्पर्शनेन्द्रिय-करण। इस प्रकार यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता, जिसमें जितनी इंद्रियां प्राप्त हैं। इस प्रकार इस क्रम से भाषा-करण चार प्रकार का, मनो-करण चार प्रकार का, कषाय-करण चार प्रकार का, समुद्घात-करण सात प्रकार का, संज्ञा-करण चार प्रकार का, लेश्या-करण छह प्रकार का, दृष्टि-करण तीन प्रकार का, वेद-करण तीन प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-स्त्री-वेद-करण, पुरुष-वेद-करण, नपुंसक-वेद-करण। ये सर्व नैरयिक, नैरयिक आदि
के दंडक यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता, जिसे जो प्राप्त है, उसके वह सर्व वक्तव्य है। १०६. भंते! प्राणातिपात-करण कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है?
गौतम! प्राणातिपात-करण पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-एकेन्द्रिय-प्राणातिपात-करण यावत् पंचेन्द्रिय-प्राणातिपात-करण। इस प्रकार निरवशेष यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता। १०७. भंते! पुद्गल-करण कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है? गौतम! पुद्गल-करण पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-वर्ण-करण, गंध-करण, रस-करण, स्पर्श-करण, संस्थान-करण। १०८. भंते! वर्ण-करण कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है?
गौतम! पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-कृष्ण-वर्ण-करण यावत् शुक्ल-वर्ण करण। इस प्रकार गंध-करण दो प्रकार का, रस-करण पांच प्रकार का, स्पर्श-करण आठ प्रकार का प्रज्ञप्त है।
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