Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १८ : उ. १ : सू. १५-२५ मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी, विभंग-ज्ञानी की एकत्व-बहुत्व में आहारक की भांति
वक्तव्यता। १६. सयोगी, मन-योगी, वचन-योगी, काय-योगी के एकत्व-बहुत्व की आहारक की भांति
वक्तव्यता, इतना विशेष है-जिसके जो योग है। अयोगी-जीव सिद्ध, मनुष्य एकत्व-बहुत्व में प्रथम है, अप्रथम नहीं है। १७. साकारोपयुक्त, अनाकारोपयुक्त के एकत्व-बहुत्व की अनाहारक की भांति वक्तव्यता। १८. सवेदक यावत् नपुंसकवेदक के एकत्व-बहुत्व की आहारक की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-जिसके जो वेद है। अवेदक के एकत्व-बहुत्व की तीनों पदों में अकषायी की
भांति वक्तव्यता। १९. सशरीरी की आहारक की भांति वक्तव्यता। इसी प्रकार यावत् कर्मक-शरीरी की
वक्तव्यता, जिसके जो शरीर है। इतना विशेष है-आहारक-शरीरी की एकत्व-बहुत्व में सम्यग-दृष्टि की भांति वक्तव्यता। अशरीरी जीव सिद्ध एकत्व-बहुत्व में प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं। २०. पांच पर्याप्तियों से पर्याप्तक, पांच पर्याप्तियों से अपर्याप्तक के एकत्व-बहुत्व की आहारक की भांति वक्तव्यता, इतना विशेष है-जिसके जो पर्याप्ति, अपर्याप्ति है यावत् वैमानिक प्रथम नहीं हैं, अप्रथम हैं। यह लक्षण गाथा हैजो जिस भाव को प्राप्त कर चुका वह भाव उसके लिए अप्रथम होता है। शेष अप्राप्त पूर्व भावों में जीव प्रथम होता है। चरम-अचरम-पद २१. भंते! क्या जीव भाव से चरम है? अचरम है?
गौतम! चरम नहीं है, अचरम है। २२. भंते! नैरयिक नैरयिक-भाव से-पृच्छा। ___ गौतम! स्यात् चरम है, स्यात् अचरम है। इसी प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता। सिद्ध
की जीव की भांति वक्तव्यता। २३. जीवों की पृच्छा। गौतम! चरम नहीं हैं, अचरम हैं। नैरयिक चरम भी हैं, अचरम भी हैं। इसी प्रकार यावत्
वैमानिकों की वक्तव्यता। सिद्धों की जीवों की भांति वक्तव्यता। २४. आहारक सर्वत्र एकत्व में स्यात् चरम है, स्यात् अचरम है। बहुवचन में चरम भी हैं,
अचरम भी हैं। अनाहारक-जीव, सिद्ध एकवचन-बहुवचन में चरम नहीं हैं, अचरम हैं।
शेष स्थानों में एकवचन-बहुवचन की आहारक की भांति वक्तव्यता। २५. भवसिद्धिक-जीव-पद में एकवचन-बहुवचन में चरम हैं, अचरम नहीं हैं। शेष स्थानों में
आहारक की भांति वक्तव्यता। अभवसिद्धिक सर्वत्र एकवचन-बहुवचन में चरम नहीं है, अचरम है। नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक-जीवों, सिद्धों के एकवचन-बहुवचन की
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