Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १८ : उ. ६, ७ : सू. ११४- १२१
स्यात् दो गंध, स्यात् एक रस, स्यात् दो रस, स्यात् तीन रस, स्यात् चार रस, स्यात् दो स्पर्श, स्यात् तीन स्पर्श, स्यात् चार स्पर्श वाला प्रज्ञप्त है।
११५. भंते! पांच- प्रदेशी स्कंध कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाला प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! स्यात् एक वर्ण, स्यात् दो वर्ण, स्यात् तीन वर्ण, स्यात् चार वर्ण, स्यात् पांच वर्ण, स्यात् एक गंध, स्यात् दो गंध, स्यात् एक रस, स्यात् दो रस, स्यात् तीन रस, स्यात् चार रस, स्यात् पांच रस, स्यात् दो स्पर्श, स्यात् तीन स्पर्श, स्यात् चार स्पर्श वाला प्रज्ञप्त है । पांच- प्रदेशी की भांति यावत् असंख्येय-प्रदेशी स्कन्ध की वक्तव्यता ।
११६. भंते! सूक्ष्म - परिणत अनंत- प्रदेशी स्कंध कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाला प्रज्ञप्त है ?
पांच - प्रदेशी की भांति निरवशेष वक्तव्यता ।
११७. भंते! बादर - परिणत अनंत प्रदेशी स्कंध कितने वर्ण यावत् कितने स्पर्श वाला प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! स्यात् एक वर्ण यावत् स्यात् पांच वर्ण, स्यात् एक गंध, स्यात् दो गंध, स्यात् एक रस यावत् स्यात् पांच रस, स्यात् चार स्पर्श यावत् स्यात् आठ स्पर्श वाला प्रज्ञप्त है। ११८. भंते! वह ऐसा ही है । भते ! वह ऐसा ही है ।
सातवां उद्देशक
केवलि - भाषा-पद
११९. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा - भंते! अन्यतीर्थिक इस प्रकार आख्यान यावत् प्ररूपण करते हैं - केवली यक्षावेश से आविष्ट होते हैं। यक्षावेश से आविष्ट होने पर दो भाषाएं बोलते हैं, जैसे मृषा, सत्यामृषा । भंते! यह इस प्रकार कैसे है ?
गौतम ! जो अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं यावत् जिन्होंने ऐसा कहा है, उन्होंने मिथ्या कहा है। गौतम ! मैं इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता हूं-न केवली यक्षावेश से आविष्ट होते हैं, न केवली यक्षावेश से आविष्ट होने पर दो भाषाएं बोलते हैं- जैसे - मृषा, सत्यामृषा । केवली असावद्य और अपरोपघातिनी दो भाषाएं बोलते हैं, जैसे - सत्यभाषा, असत्यामृषा-व्यवहारभाषा ।
उपधि-पद
१२०. भंते! उपधि के कितने प्रकार प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! उपधि के तीन प्रकार प्रज्ञप्त हैं- जैसे - कर्म - उपधि, शरीर - उपधि, बाह्य- भांड - अमत्र- उपकरण - उपधि ।
१२१. भंते! नैरयिकों की पृच्छा ।
गौतम ! उपधि के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं, जैसे - कर्म - उपधि, शरीर - उपधि । एकेन्द्रिय को छोड़कर शेष सब दंडकों के यावत् वैमानिकों के तीन उपधि प्रज्ञप्त है । एकेन्द्रिय के दो
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