Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
भगवती सूत्र
श. १८ : उ. ७ : सू. १५४-१५७ सौ-, दो-सौ-, तीन-सौ-, उत्कृष्टतः पांच-सौ-वर्ष में भोगकर क्षीण करते हैं? हां, है। १५५. भंते! क्या ऐसे देव हैं, जो विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को जघन्यतः हजार-वर्ष, दो-हजार-वर्ष, तीन-हजार-वर्ष उत्कृष्टतः पांच-हजार-वर्ष में भोगकर क्षीण करते हैं?
हां, है। १५६. भंते! क्या ऐसे देव हैं, जो विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को जघन्यतः एक-लाख-वर्ष, दो-लाख-वर्ष, तीन-लाख-वर्ष उत्कृष्टतः पांच-लाख-वर्ष में भोग कर क्षीण करते हैं?
हां, है। १५७. भंते! वे देव कौन हैं, जो विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को जघन्यतः
सौ-, दो-सौ-, तीन-सौ- उत्कृष्टतः पांच-सौ-वर्ष में भोग कर क्षीण करते हैं? भंते! वे देव कौन हैं, यावत् पांच-हजार-वर्ष में भोगकर क्षीण करते हैं? भंते! वे देव कौन हैं, यावत् पांच-लाख-वर्ष में भोगकर क्षीण करते हैं? गौतम! वाणमंतर देव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को सौ-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। असुरेन्द्र को छोड़कर भवनवासी-देव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को दो-सौ-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। असुरकुमार-देव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को तीन-सौ-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। ग्रह-, नक्षत्र-, -तारा-रूप ज्योतिष्क-देव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को चार-सौ-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। ज्योतिषराज ज्योतिषेन्द्र चंद्र-सूर्य-देव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को पांच-सौ-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। सौधर्म-ईशान-देव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को एक-हजार-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। सनत्कुमार-माहेन्द्र-देव विद्यमान अनंत-कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को दो-हजार-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। इसी प्रकार इस अभिलाप से ब्रह्मलोक-लातंकदेव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को तीन-हजार-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। महाशुक्र-सहस्रार-देव-विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को चार-हजार-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। आनत-प्राणत-, आरण-अच्युत-देव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्यकर्म-पुद्गलों को पांच-हजार-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। निम्नवर्ती-प्रैवेयक-देव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को एक-लाख-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। मध्यम-ग्रैवेयक-देव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को दो-लाख-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। उपरिवर्ती-प्रैवेयक-देव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को तीन-लाख-वर्ष में भोगकर क्षीण कर देते हैं। विजय-वैजयन्त-, जयंत-अपराजित-देव विद्यमान अनंत कर्मों-पुण्य-कर्म-पुद्गलों को चार
६४९