Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १८ : उ. ८ : सू. १६५-१७४ - कर्म का प्रतिहनन न करने वाले, भविष्य के पाप कर्म का प्रत्याख्यान न करने वाले, क्रिया - सहित, असंवृत एकांत दंड यावत् एकांत - बाल भी हो ।
१६६. भगवान् गौतम ने उन अन्ययूथिकों से इस प्रकार कहा- आर्यो! कैसे हम तीन योग और तीन करण से असंयत यावत् एकान्त- बाल हैं ?
१६७. अन्ययूथिकों ने भगवान् गौतम से इस प्रकार कहा- आर्यो ! तुम गमन करते हुए प्राणों को आक्रांत, अभिहत यावत् उपद्रुत करने के कारण तीन योग और तीन करण से यावत् एकांत-बाल हो ।
१६८. भगवान् गौतम ने अन्ययूथिकों से इस प्रकार कहा- आर्यो ! हम गमन करते हुए प्राणों को आक्रांत यावत् उपद्रुत नहीं करते। आर्यो ! हम शारीरिक आवश्यकता की पूर्ति, सेवा आदि कार्य तथा संयम की दृष्टि से देख-देख कर बहुत सावधानी पूर्वक गमन करते हैं। हम देख-देख कर बहुत सावधानी पूर्वक गमन करते हैं, इसलिए प्राणों को आक्रांत नहीं करते यावत् उपद्रुत नहीं करते। हम प्राणों को अनाक्रांत यावत् अनुपद्रुत करते हैं, इसलिए तीन योग और तीन करण से संयत यावत् एकांत-पंडित हैं। आर्यो ! तुम स्वयं तीन योग और तीन करण से असंयत यावत् एकांत - बाल भी हो ।
१६९. अन्ययूथिकों ने भगवान् गौतम से इस प्रकार कहा- आर्यो ! कैसे हम तीन योग और तीन करण से असंयत यावत् एकांत - बाल भी हैं ?
१७०. भगवान् गौतम ने उन अन्ययूथिकों को इस प्रकार कहा- आर्यो ! तुम गमन करते हुए प्राणों को आक्रांत यावत् उपद्रुत करते हो, इसलिए तुम प्राणों को आक्रांत यावत् उपद्रुत करते हुए तीन योग और तीन करण से असंयत यावत् एकांत-बाल भी हो।
१७१. भगवान् गौतम ने उन अन्ययूथिकों को इस प्रकार कहा - उत्तर दिया, उत्तर देकर जहां श्रमण भगवान् महावीर थे वहां आए, आकर श्रमण भगवान् महावीर को वंदन - नमस्कार किया, वन्दन - नमस्कार कर न अति दूर न अति निकट यावत् पर्युपासना करने लगे । १७२. अयि गौतम ! श्रमण भगवान् महावीर ने भगवान् गौतम से इस प्रकार कहा- सुष्ठु गौतम ! तुमने अन्ययूथिकों को इस प्रकार कहा। साधु गौतम ! तुमने अन्ययूथिकों को इस प्रकार कहा । गौतम ! मेरे अनेक अंतेवासी श्रमण-निर्ग्रन्थ छद्मस्थ हैं, जो इस प्रकार का व्याकरण करने में समर्थ नहीं है, जैसे तुम हो। इसलिए सुष्ठु गौतम ! अन्ययूथिकों ने इस प्रकार कहा । साधु गौतम! तुमनें अन्ययूथिकों से इस प्रकार कहा ।
१७३. श्रमण भगवान् महावीर के इस प्रकार कहने पर भगवान् गौतम हृष्ट-तुष्ट हो गए। उन्होंने भगवान् महावीर को वंदन - नमस्कार किया, वंदन - नमस्कार कर इस प्रकार कहापरमाणु - पुद्गल आदि का जानना - देखना- पद
१७४. भंते! छद्मस्थ मनुष्य क्या परमाणु- पुद्गल को जानता - देखता है ? अथवा नहीं जानता, नहीं देखता ?
गौतम ! कोई जानता है, देखता नहीं। कोई नहीं जानता, नहीं देखता ।
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