Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १८ : उ. १० : सू. २०५-२१३
करते हुए रह रहे हैं। इसलिए म श्रमण ज्ञातपुत्र के पास जाऊं, इन इस प्रकार के आठ हेतु, प्रश्न, कारण और व्याकरण को पूछूं। वे इन इस प्रकार के अर्थ यावत् व्याकरण का उत्तर देंगे तब मैं वंदना करूंगा, नमस्कार करूंगा यावत् पर्युपासना करूंगा । यदि वे इन अर्थ यावत् व्याकरण का उत्तर नहीं देंगे तो मैं इन्हीं अर्थों यावत् व्याकरणों से उन्हें निरुत्तर करूंगा - इस प्रकार संप्रेक्षा की, संप्रेक्षा कर स्नान किया यावत् अल्पभार और बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत कर अपने घर से प्रतिनिष्क्रमण किया, प्रतिनिष्क्रमण कर पैदल चलते हुए एक सौ छात्रों के साथ संपरिवृत होकर वाणिज्यग्राम नगर के बीचोंबीच निर्गमन किया, निर्गमन कर जहां दूतिपलाशक चैत्य था, जहां श्रमण भगवान् महावीर थे, वहा आया, आकर श्रमण भगवान् महावीर के न अतिदूर न अतिनिकट स्थित होकर श्रमण भगवान् महावीर से इस प्रकार कहा
२०६. भंते! क्या तुम्हें यात्रा मान्य है ? भंते! क्या तुम्हें यमनीय मान्य है ? भंते! क्या तुम्हें अव्याबाध मान्य है ? भंते! क्या तुम्हें प्रासुक विहार मान्य है ?
सोमिल! मुझे यात्रा भी मान्य है, यमनीय भी मान्य है, अव्याबाध भी मान्य है, प्रासुक विहार भी मान्य है ।
२०७. भंते! तुम्हारी यात्रा क्या है ?
सोमिल! ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और संयम आदि योगों के साथ जो मेरी प्रयत्नशीलता ( यतना) है, वह मेरी यात्रा है
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२०८. भंते! तुम्हारा यमनीय क्या है ?
सोमिल! यमनीय दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे - इन्द्रिय-यमनीय और नोइन्द्रिय-यमनीय । २०९. भंते! वह इन्द्रिय-यमनीय क्या है ?
सोमिल ! इन्द्रिय-यमनीय- जो श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय निरुपहत (परिपूर्ण) होकर भी मेरे वश में रहते हैं, वह इन्द्रिय-यमनीय है । २१०. भंते! वह नोइन्द्रिय-यमनीय क्या है ?
सोमिल! नोइन्द्रिय-यमनीय जो मेरे क्रोध, मान, माया और लोभ व्यवच्छिन्न होने उदीप्त नहीं होते, वह नोइन्द्रिय-यमनीय है । यह है यमनीय ।
२११. भंते! वह तुम्हारा अव्याबाध क्या है ?
सोमिल! जो मेरे वातिक, पैत्तिक, श्लैष्मिक, सांनिपातिक-ये विविध रोग आतंक और शरीर- गत दोष उपशांत हैं, उदीर्ण नहीं हैं, वह अव्याबाध है ।
२१२. भंते! वह प्रासुक विहार क्या है ?
सोमिल! जो मैं आरामों, उद्यानों, देवकुलों, स्त्री, पुरुष और नपुंसक - रहित व्यक्तियों में प्रासुक एषणीय पीठ - फलक, शय्या और संस्तारक को ग्रहण कर विहार करता हूं, वह प्रासु विहार है।
२१३. भंते! तुम्हारे लिए सरिसवय भक्ष्य हैं या अभक्ष्य ?
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