Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
भगवती सूत्र
श. १८ : उ. ५ : सू. १०१-१०६
१०१. भंते! दो असुरकुमार ? पूर्ववत् । इसी प्रकार विकलेन्द्रिय को छोड़कर एकेन्द्रिय, यावत् वैमानिकों की वक्तव्यता ।
नैरयिक- आदि का आयु-पद
१०२. भंते! जो भव्य नैरयिक अनंतर उद्वर्तन कर पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक में उपपन्न होने वाला है, भंते! वह किस आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है ?
गौतम ! नैरयिक आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, वह पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक- आयुष्य को सामने रख कर रहता है। इसी प्रकार मनुष्य में भी इतना विशेष है - मनुष्य आयुष्य को सामने रखकर रहता है ।
१०३. भंते! जो भव्य असुरकुमार अनंतर उद्वर्तन कर पृथ्वीकायिक उपपन्न होने वाला है, भंते! वह किस आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है ?
गौतम ! वह असुरकुमार के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, पृथ्वीकायिक के आयुष्य को सामने रखकर रहता है। इसी प्रकार जो भव्य जिसमें उपपन्न होने वाला है, वह उसे सामने रख कर रहता है, जिसमें स्थित है, उसका प्रतिसंवेदन करता है, यावत् वैमानिक । इतना विशेष है - पृथ्वीकायिक पृथ्वीकायिक-जीवों में उपपन्न होने वाला है। वह वर्तमान पृथ्वीकायिक के आयुष्य का प्रतिसंवेदन करता है, आगामी पृथ्वीकायिक को सामने रखकर रहता है। इसी प्रकार यावत् मनुष्य का स्वस्थान में उपपात वक्तव्य है, परस्थान में भी पूर्ववत् ।
असुरकुमार आदि का विक्रिया-पद
१०४. भंते! दो असुरकुमार का एक असुरकुमारावास
असुरकुमार देव के रूप में उपपन्न
हुए। उनमें एक असुरकुमार देव ऋजु विक्रिया करूंगा, यह सोचकर ऋजु विक्रिया करता है, वक्र - विक्रिया करूंगा, यह सोचकर वक्र-विक्रिया करता है, जो जैसे चाहता है, वह वैसे विक्रिया करता है। एक असुरकुमार देव ऋजु विक्रिया करूंगा - यह सोचकर वक्र-विक्रिया करता है । वक्र-विक्रिया करूंगा, यह सोचकर ऋजु विक्रिया करता है । जो जैसे चाहता है, वह वैसे विक्रिया नहीं करता। भंते! यह इस प्रकार कैसे है ?
गौतम ! असुरकुमार देव दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं- जैसे - मायी - मिथ्यादृष्टि - उपपन्नक, अमायी-सम्यगृष्टि-उपपन्नक । उनमें जो मायी - मिथ्यादृष्टि - उपपन्नक असुरकुमार देव है, वह ऋजु-विक्रिया करूंगा, यह सोचकर वक्र - विक्रिया करता है, यावत् जो जैसे चाहता है, वह वैसे विक्रिया नहीं कर पाता। जो अमायी- सम्यग्दृष्टि - उपपन्नक- देव है, वह ऋजु विक्रिया करूंगा, यह सोचकर ऋजु विक्रिया करता है, यावत् जो जैसे कहता है वह वैसे विक्रिया करता है।
१०५. भंते! दो नागकुमार ?
पूर्ववत् । इसी प्रकार स्तनितकुमार की वक्तव्यता । इसी प्रकार वाणमंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक की वक्तव्यता ।
१०६. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
६४१