Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १८ : उ. ३ : सू. ५६-६२
भांति वक्तव्यता (भ. ३ / १३४) यावत् पर्युपासना करता हुआ इस प्रकार बोला५७. भंते! कापोत- लेश्या वाला पृथ्वीकायिक कापोत- लेश्या वाले पृथ्वीकायिक से अनंतर उद्वर्तन कर मनुष्य - शरीर को प्राप्त करता है, प्राप्त कर केवल बोधि से बुद्ध होता है, बुद्ध होकर उसके पश्चात् सिद्ध यावत् सब दुःखों का अंत करता है ?
हां माकन्दिक-पुत्र ! कापोत-लेश्या वाला पृथ्वीकायिक यावत् सब दुःखों का अंत करता है ।
५८. भंते! कापोत- लेश्या वाला अप्कायिक जीव कापोत- लेश्या वाले अप्कायिक से अनंतर उद्वर्तन कर मनुष्य - शरीर को प्राप्त करता है, प्राप्त कर केवल बोधि से बुद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ?
हां, माकन्दिक - पुत्र ! यावत् सब दुःखों का अंत करता है ।
५९. भंते! कापोत-लेश्या वाला वनस्पतिकायिक-जीव कापोत- लेश्या वाले वनस्पतिकायिक से अनन्तर उद्वर्तन कर मनुष्य शरीर को प्राप्त करता है, प्राप्त कर केवल बोधि से बुद्ध होता है, बुद्ध होकर सिद्ध यावत् सब दुःखों का अंत करता है ?
हां, माकन्दिक-पुत्र! यावत् सब दुःखों का अंत करता है ।
६०. भंते! वह ऐसा ही है, भंते! वह ऐसा ही है - यह कहकर अनगार माकंदिक-पुत्र ने श्रमण भगवान् महावीर को वंदन - नमस्कार किया, वंदन- नमस्कार कर जहां श्रमण-निर्ग्रन्थ थे, वहां आया, आकर श्रमण-निर्ग्रन्थों को इस प्रकार कहा- आर्यो ! कापोत- लेश्या वाला पृथ्वीकायिक यावत् सब दुःखों का अंत करता है। आर्यो ! कापोत-लेश्या वाला अप्कायिक यावत् सब दुःखों का अंत करता है । आर्यो ! कापोत- लेश्या वाला वनस्पतिकायिक यावत् सब दुःखों का अंत करता है । ६१. माकन्दिक - पुत्र अनगार के इस प्रकार आख्यान यावत् प्ररूपणा करने पर श्रमण-निर्ग्रथों ने इस अर्थ पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की। इस अर्थ पर अश्रद्धा, अप्रतीति और अरुचि करते हुए श्रमण-निर्ग्रन्थ जहां श्रमण भगवान् महावीर थे, वहां आए, आकर श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार किया, वन्दन - नमस्कार कर इस प्रकार कहा—भंते! माकंदिक - पुत्र अनगार हमें इस प्रकार आख्यान यावत् प्ररूपणा करता है-आर्यो ! कापोत- लेश्या वाला पृथ्वीकायिक यावत् सब दुःखों का अंत करता है । कापोत- लेश्या वाला अप्कायिक यावत् सब दुःखों का अंत करता है । आर्यो! कापोत- लेश्या वाला वनस्पतिकायिक यावत् सब दुःखों का अंत करता है ।
६२. भंते! यह इस प्रकार कैसे है ?
आर्यो! यह कहकर श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों को आमंत्रित कर इस प्रकार कहा–आर्यो! माकन्दिक - पुत्र अनगार तुम्हें जो आख्यान यावत् प्ररूपणा करता है - आर्यो ! कापोत-लेश्या वाला पृथ्वीकायिक यावत् सब दुःखों का अंत करता है। आर्यो ! कापोत- लेश्या वाला वनस्पतिकायिक यावत् सब दुःखों का अंत करता है। यह अर्थ सत्य है। आर्यो! मैं भी इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन एवं प्ररूपणा करता हूं- कृष्ण - ण - लेश्या
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