Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १६ : उ. ६ : सू. ९१-९६
भगवती सूत्र ७. श्रमण भगवान् महावीर स्वप्न में हजारों ऊर्मियों और वीचियों से परिपूर्ण एक महासागर को भुजाओं से तीर्ण हुआ देखकर प्रतिबुद्ध हुए, उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर ने अनादि, अनंत, प्रलंब और चार अंत वाले संसार-रूपी कानन को पार किया। ८. श्रमण भगवान् महावीर तेज से जाज्वल्यमान एक महान् सूर्य को स्वप्न में देखकर प्रतिबुद्ध हुए, उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर को अनंत, अनुत्तर, निर्व्याघात, निरावरण, पूर्ण, प्रतिपूर्ण केवल-ज्ञान और केवल-दर्शन प्राप्त हुए। ९. श्रमण भगवान् महावीर स्वप्न में भूरे और नील वर्ण वाली अपनी आंतों से मानुषोत्तर पर्वत को चारों ओर से आवेष्टित और परिवेष्टित हुआ देखकर प्रतिबद्ध हुए, उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर की देव, मनुष्य और असुरों के लोक में प्रधान कीर्ति, वर्ण, शब्द और श्लाघा व्याप्त हुई। श्रमण भगवान् महावीर ऐसे हैं, श्रमण भगवान् महावीर ऐसे हैं ये शब्द सर्वत्र फैल गए। १०. श्रमण भगवान् महावीर स्वप्न में महान् मंदर पर्वत की मंदर चूलिका पर अवस्थित सिंहासन पर अपने आपको बैठे हुए देख कर प्रतिबुद्ध हुए, उसके फलस्वरूप श्रमण भगवान् महावीर ने देव, मनुष्य और असुर की परिषद् के बीच केवलि-प्रज्ञप्त धर्म का आख्यान, प्रज्ञापन, प्ररूपण, दर्शन, निदर्शन और उपदर्शन किया। स्वप्न-फल-पद ९२. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में एक महान् अश्व-पंक्ति, गज-पंक्ति, नर-पंक्ति, किन्नर-पंक्ति, किंपुरुष-पंक्ति, महोरग-पंक्ति, गंधर्व-पंक्ति, वृषभ-पंक्ति को देखता हुआ देखता है, चढता हुआ चढता है, मैं चढ गया हूं, ऐसा स्वयं को मानता है, उसी क्षण वह जागृत हो जाए तो उसी भव-ग्रहण में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है। ९३. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई, समुद्र के दोनों छोरों का स्पर्श करती हुई एक महान् रस्सी को देखता हुआ देखता है, समेटता हुआ समेटता है। मैंने समेटा है, ऐसा स्वयं को मानता है, वह उसी क्षण जागृत हो जाए तो उसी भव-ग्रहण में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है। ९४. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई लोक के दोनों छोरों का स्पर्श करती हुई एक महान् रज्जु को देखता हुआ देखता है, काटता हुआ काटता है। मैंने काट दिया है, ऐसा स्वयं को मानता है, वह उसी क्षण जागृत हो जाए तो उसी भव-ग्रहण में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है। ९५. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में एक महान् काले सूत्र, नीले सूत्र, लाल सूत्र, पीले सूत्र
अथवा श्वेत सूत्र को देखता हुआ देखता है, सुलझाता हुआ सुलझाता है, मैंने इसे सुलझाया है, ऐसा स्वयं को मानता है, वह उसी क्षण जागृत हो जाए तो उसी भव-ग्रहण में सिद्ध होता है यावत् सब दुःखों का अंत करता है। ९६. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न के अंत में एक महान् लोह-राशि, ताम्र-राशि, रांगा-राशि, सीसा
राशि को देखता हुआ देखता है, उस पर चढता हुआ चढ़ता है। मैं चढ़ गया हूं, ऐसा स्वयं
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