Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
भगवती सूत्र
श. १७ : उ. १ : सू. ५-१०
होता है। जिन जीवों के शरीर से ताड़ वक्ष निष्पन्न हुआ है, ताड़ फल निष्पन्न हुआ है, वे जीव भी कायिकी यावत् पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं।
६. भंते! वह ताड़-फल अपनी गुरुता से, भारीपन से, गुरुत्व - भारीपन से स्वाभाविक रूप से नीचे आता हुआ वहां रहे हुए प्राण यावत् सत्त्वों का प्राण वियोजन करता है, भंते! तब वह पुरुष कितनी क्रियाओं से स्पृष्ट होता है ?
गौतम ! जिस समय वह ताड़ - फल अपनी गुरुता से यावत् प्राण का वियोजन करता है, तब वह पुरुष कायिकी यावत् चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से ताड़- वृक्ष निष्पन्न हुआ है, वे जीव भी कायिकी यावत् चार क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। जिन जीवों के शरीर से ताड़ फल निष्पन्न हुआ है, जीव कायिकी यावत् पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। जो जीव नीचे गिरते हुए ताड़ - फल के आलंबन बनते हैं, वे जीव भी कायिकी यावत् पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं ।
७. भंते! कोई वृक्ष के मूल को हिलाता अथवा गिराता है, वह पुरुष कितनी क्रिया से स्पृष्ट होता है ?
गौतम ! जिस समय वह पुरुष वृक्ष के मूल को हिलाता अथवा गिराता उस समय वह पुरुष कायिकी यावत् पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से वह मूल निष्पन्न हुआ यावत् बीज निष्पन्न हुआ, वे जीव भी कायिकी यावत् पांच क्रिया से स्पृष्ट होते हैं।
८. भंते! वह मूल अपनी गुरुता से यावत् प्राण का वियोजन करता है, तब वह पुरुष कितनी क्रिया से स्पृष्ट होता है ?
गौतम ! जिस समय वह मूल अपनी गुरुता से यावत् प्राण का वियोजन करता है, उस समय वह पुरुष कायिकी यावत् चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से कंद निष्पन्न हुआ यावत् बीज निष्पन्न हुआ, वे जीव भी कायिकी यावत् चार क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। जिन जीवों के शरीर से मूल निष्पन्न हुआ है, वे जीव कायिकी यावत् पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। जो जीव स्वभाव से नीचे गिरते हुए मूल के आलंबन बनते हैं, वे जीव भी कायिकी यावत् पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं।
९. भंते! कोई वृक्ष के कंद को हिलाता अथवा गिराता है । वह पुरुष कितनी क्रिया से स्पृष्ट होता है :
गौतम ! जिस समय वह पुरुष वृक्ष के कंद को हिलाता अथवा गिराता है, उस समय वह कायिकी यावत् पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से मूल निष्पन्न हुआ यावत् बीज निष्पन्न हुआ, वे जीव भी कायिकी यावत् पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं। १०. भंते! वह कंद अपनी गुरुता से यावत् प्राण का वियोजन करता है, भंते! तब वह पुरुष कितनी क्रिया से स्पृष्ट होता है ?
गौतम! जिस समय वह कंद अपनी गुरुता से यावत् प्राण का वियोजन करता है, उस समय वह पुरुष कायिकी यावत् चार क्रियाओं स स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से
६१४