Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १७ : उ. १०-१७ : सू. ७८-८७ चार समुद्घात प्रज्ञप्त हैं, जैसे-वेदना-समुद्घात यावत् वैक्रिय-समुद्घात, मारणान्तिक-समुद्घात से समवहत होता हुआ वह देश से समवहत होता है, शेष पूर्ववत् यावत्
अधःसप्तमी से समवहत होकर ईषत्-प्राग्भारा में उपपात वक्तव्य है। ७९. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। .
ग्यारहवां उद्देशक ८०. भंते! सौधर्म-कल्प पर वायुकायिक समवहत होता है, समवहत होकर जो भव्य इसी रत्नप्रभा-पृथ्वी के घनवात, तनुवात, घनवात-वलयों में, तनवात-वलयों में वायुकायिक के रूप में उपपन्न होने वाला है, भंते! क्या वह पहले उपपन्न होता है, पश्चात् स्थान को संप्राप्त करता है। पूर्ववत्। इसी प्रकार सौधर्म-कल्प के वायुकायिक का सातों पृथ्वियों में उपपात वक्तव्य है। इसी प्रकार यावत् ईषत्-प्राग्भारा वायुकायिक का अधःसप्तमी में यावत् उपपात वक्तव्य है। ८१. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
बारहवां उद्देशक एकेन्द्रिय-पद ८२. भंते! सब एकेन्द्रिय-जीव समान आहार वाले हैं? इस प्रकार जैसे प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक (भ. १/७६-८१) में पृथ्वीकायिक-जीवों की वक्तव्यता, वही एकेन्द्रिय-जीवों की यहां वक्तव्य है यावत् समान आयु वाले नहीं है, एक साथ उपपन्न नहीं है। ८३. भंते! एकेन्द्रिय-जीवों के कितनी लेश्याएं प्रज्ञप्त हैं?
गौतम! चार लेश्याएं प्रज्ञप्त हैं जैसे–कृष्ण-लेश्या, नील-लेश्या, कापोत-लेश्या, तेजो
-लेश्या। ८४. भंते! इन कृष्ण-लेश्या, नील-लेश्या, कापोत-लेश्या और तेजो-लेश्या वालों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है? गौतम! तेजो-लेश्या वाले एकेन्द्रिय सबसे अल्प हैं, कापोत-लेश्या वाले उनसे अनन्त-गुण हैं, नील-लेश्या वाले उनसे विशेषाधिक हैं, कृष्ण-लेश्या वाले उनसे विशेषाधिक हैं। ८५. भंते! इन कृष्ण-लेश्या वाले एकेन्द्रिय-जीवों की ऋद्धि?
द्वीपकुमार (भ. १६/१२८) की भांति वक्तव्यता। ८६. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
तेरहवां से सत्रहवां उद्देशक नागकुमार-आदि-पद ८७. भंते! सब नागकुमार समान आहार वाले हैं? सोलहवें शतक के दीपकुमार-उद्देशक
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