Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सतरहवां शतक
पहला उद्देशक श्रुत-देवता भगवती को नमस्कार। संग्रहणी गाथा
१. हाथी २. संयत ३. शैलेशी ४. क्रिया ५. ईशान ६-७. पृथ्वी ८-९. पानी १०-११. वायु १२. एकेन्द्रिय १३. नाग १४. सुपर्ण १५. विद्युत् १६-१७. वायु, अग्नि प्रस्तुत
शतक के ये सत्तरह उद्देशक हैं। हस्तिराज-पद १. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा-भंते! हस्तिराज उदायी कहां से अनंतर उद्वर्तन कर हस्तिराज उदायी के रूप में उपपन्न हुआ है? गौतम! असुरकुमार-देव से अनंतर उद्वर्तन कर हस्तिराज उदायी के रूप में उपपन्न हुआ
२. भंते! हस्तिराज उदायी कालमास में काल-धर्म को प्राप्त कर कहां जाएगा? कहां उपपन्न होगा? गौतम! इसी रत्नप्रभा-पृथ्वी के उत्कृष्ट सागरोपम स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिक के रूप में उपपन्न होगा। ३. भंते! वह वहां से अनंतर उद्वर्तन कर कहां जाएगा? कहां उपपन्न होगा? गौतम! महाविदेह-वास में सिद्ध होगा यावत् सब दुःखों का अन्त
करेगा। ४. भंते! हस्तिराज भूतानंद कहां से अनंतर उद्वर्तन कर हस्तिराज भूतानन्द के रूप में उपपन्न हुआ है? इसी प्रकार उदायी की भांति वक्तव्यता यावत् सब दुःखों का अंत करेगा। क्रिया-पद ५. भंते! कोई पुरुष ताड़ के वृक्ष पर चढ़ता है। चढ़कर ताड़-वृक्ष के ताड़-फल को हिलाता है अथवा गिराता है, वह पुरुष कितनी क्रिया से स्पृष्ट होता है? गौतम! जिस समय वह ताड़-वृक्ष पर चढ़ता है। चढ़कर ताड़-वृक्ष से ताड़-फल को हिलाता अथवा गिराता है उस समय वह पुरुष कायिकी यावत् पांच क्रियाओं से स्पृष्ट
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