Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १६ : उ. ९-११ : सू. १२१-१२८ उस रुचकेन्द्र उत्पात पर्वत के उत्तर से छह सौ करोड़ उसी प्रकार यावत् चालीस हजार योजन अवगाहन करने पर वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज की बलिचंचा नामक राजधानी प्रज्ञप्त है- एक लाख योजन प्रमाण, उसी प्रकार यावत् बलिपीठ का उपपात यावत् सर्व आत्मरक्षक देव निरवशेष वक्तव्य हैं, इतना विशेष है - स्थिति सागरोपम से कुछ अधिक प्रज्ञप्त है। शेष पूर्ववत् यावत् (भ. २ / ११८-१२१) वैरोचनेन्द्र बलि, वैरोचनेन्द्र बलि ।
१२२. भंते! वह ऐसा ही है। भंते!
वह ऐसा ही है । यावत् विहरण करने लगे ।
दसवां उद्देशक
अवधि-पद
१२३. भंते! अवधि कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम ! अवधि दो प्रकार का प्रज्ञप्त है । अवधि-पद (पण्णवणा, पद ३३) निरवशेष वक्तव्य है ।
१२४. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है । यावत् विहरण करने लगे ।
ग्यारहवां उद्देशक
द्वीपकुमार-आदि-पद
१२५. भंते! क्या सब द्वीपकुमार समान आहार वाले हैं? समान उच्छ्वास - निःश्वास वाले हैं ?
यह अर्थ संगत नहीं है । इस प्रकार जैसे प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक ( भगवइ १ / ७४-७५) में द्वीपकुमारों की वक्तव्यता, उसी प्रकार यावत् समान आयुष्य और समान उच्छ्वास - निःश्वास वाले नहीं हैं ।
१२६. भंते! द्वीपकुमारों में कितनी लेश्याएं प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! चार लेश्याएं प्रज्ञप्त हैं, जैसे - कृष्ण - लेश्या, नील- लेश्या, कापोत- लेश्या, तेजो- लेश्या ।
१२७. भंते! कृष्ण-लेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले इन द्वीपकुमारों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
गौतम ! तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमार सबसे अल्प हैं । कापोत-लेश्या वाले उनसे असंख्येय- गुण हैं । नील- लेश्या वाले उनसे विशेषाधिक हैं । कृष्ण-लेश्या वाले उनसे विशेषाधिक हैं। १२८. भंते! कृष्ण-लेश्या वाले यावत् तेजो- लेश्या वाले इन द्वीपकुमारों में कौन किससे अल्पर्द्धिक अथवा महर्द्धिक हैं ?
गौतम ! नील-लेश्या वाले कृष्ण-लेश्या वालों से महर्द्धिक हैं यावत् तेजो-लेश्या वाले सबसे महर्द्धिक हैं ।
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