Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १६ : उ. ४ : सू. ५१,५२
यह अर्थ संगत नहीं है ।
भंते! दशम-भक्त (चार दिन का उपवास) करने वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है- क्या नरक में नैरयिक इतने कर्मों का करोड़ वर्ष, करोड़ों वर्ष अथवा क्रोड़ाक्रोड़ वर्ष में क्षय करते हैं ?
यह अर्थ संगत नहीं है ।
५२. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - रूक्षभोजी श्रमण-निर्ग्रन्थ जितने कर्मों की निर्जरा करता है - नरक में नैरयिक इतने कर्मों का एक वर्ष, अनेक वर्ष अथवा सौ वर्षों में क्षय नहीं करते, चतुर्थ-भक्त करने वाला श्रमण-निर्ग्रथ जितने कर्मों की निर्जरा करता है - इस प्रकार पूर्व कथित उच्चारणीय है, यावत् क्रोड़ाक्रोड़ वर्ष में क्षय नहीं करता।
गौतम! जैसे कोई पुरुष वृद्ध है, उसका शरीर जरा से जर्जरित है, त्वचा के शिथिल होने से चेहरे पर झुर्रियां पड़ गई हैं, दांतों की श्रेणी कहीं विरल हो गई है, कहीं दंत-विहीन हो गई है। गर्मी से अभिहत, प्यास से अभिहत, आतुर, बुभुक्षित, पिपासित, दुर्बल और क्लांत है। वह पुरुष एक महान् कुसुंब वृक्ष की शुष्क, जटिल, गुंडीली, 'चिकनी', टेढ़ी, शाखा पर पत्ती-रहित कुंद फरसे से प्रहार करता है, तब वह पुरुष जोर-जोर से शब्द करता है। किन्तु वह उस विशाल वृक्ष की शाखा के बड़े-बड़े टुकड़े नहीं कर सकता । गौतम ! इसी प्रकार नैरयिकों
कर्मगढ़ किए हुए होते हैं, चिकने किए हुए होते हैं, संसृष्ट किए हुए होते हैं, और अलंघ्य होते हैं। वे प्रगाढ वेदना का वेदन करते हुए भी महानिर्जरा वाले नहीं होते, महापर्यवसान वाले नहीं होते ।
जैसे कोई पुरुष अहरन को तेज शब्द, तेज घोष और निरन्तर तेज आघात के साथ हथौड़े से पीटता हुआ उस अहरन के स्थूल पुद्गलों का परिशाटन करने में समर्थ नहीं होता, गौतम ! इसी प्रकार नैरयिकों के पाप कर्म गाढ़ रूप में किए हुए होते हैं, चिकने किए हुए होते हैं, संसृष्ट किए हुए होते हैं और अलंघ्य होते हैं । वे प्रगाढ़ वेदना का वेदन करते हुए भी महानिर्जरा वाले नहीं होते, महापर्यवसान वाले नहीं होते ।
जैसे कोई पुरुष तरुण, बलवान् यावत् निपुण और सूक्ष्म शिल्प से समन्वित है। वह पुरुष एक महान् शाल्मली की गंडिका आर्द्र, सरल, गांठ-रहित, चिकनाई - रहित, सीधी शाखा पर पत्ती-सहित तीक्ष्ण हथौड़े से आक्रमण करता है, वह पुरुष बहुत जोर-जोर से शब्द नहीं करता किन्तु शाखा के बड़े-बड़े टुकड़े कर देता है। गौतम ! इसी प्रकार श्रमण-निर्ग्रथों के शिथिल रूप में किए हुए, निःसत्त्व किए हुए और विपरिणमन को प्राप्त किए हुए सूक्ष्म कर्म - पुद्गल शीघ्र विध्वस्त हो जाते हैं । वे जिस तिस मात्रा में भी वेदना का वेदन करते हुए महानिर्जरा और महापर्यवसान वाले होते हैं।
गौतम ! जैसे कोई पुरुष सूखे घास के पूलों को अग्नि में डालता है, वह अग्नि में डाला हुआ सूखा घास का पूला शीघ्र ही भस्म हो जाता है ?
हां, भस्म हो जाता है ।
गौतम ! इसी प्रकार श्रमण-निर्ग्रथों के शिथिल रूप में किए हुए, निःसत्त्व किए हुए और
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