Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १६ : उ. २ : सू. ३४-४०
३४. देवराज देवेन्द्र शक्र श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्म को सुन कर, अवधारण कर, हृष्ट-तुष्ट हो गया। उसने श्रमण भगवान् महावीर को वंदन - नमस्कार किया, वंदन - नमस्कार कर इस प्रकार कहा- भंते! अवग्रह कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
शक्र ! अवग्रह पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे - देवेन्द्र - अवग्रह, राज- अवग्रह, गृहपति अवग्रह, सागारिक- अवग्रह, साधर्मिक - अवग्रह |
भंते! जो ये श्रमण-निर्ग्रथ आर्य-रूप में विहरण करते हैं, उन्हें अवग्रह की अनुज्ञा देता हूं। यह कहकर श्रमण भगवान् महावीर को वंदन - नमस्कार किया, वंदन - नमस्कार कर उसी दिव्य यान- विमान पर चढा, चढकर जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में लौट गया ।
शक्र - सम्बन्धी व्याकरण- पद
३५. अयि भंते! भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन - नमस्कार किया, वंदन
- नमस्कार कर इस प्रकार कहा- भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र ने आपसे जो कहा, क्या वह अर्थ सत्य है ?
हां, सत्य है।
३६. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र क्या सम्यग्वादी है ? मिथ्यावादी है ?
गौतम ! सम्यग्वादी है, मिथ्यावादी नहीं है ।
३७. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र क्या सत्य भाषा बोलता है ? मृषा भाषा बोलता है ? सत्यामृषा भाषा बोलता है ? असत्यामृषा भाषा बोलता है ?
गौतम ! सत्य भाषा भी बोलता है यावत् असत्यामृषा भाषा भी बोलता है।
३८. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र क्या सावद्य भाषा बोलता है ? अनवद्य भाषा बोलता है ? गौतम ! सावद्य भाषा भी बोलता है, अनवद्य भाषा भी बोलता है ।
३९. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - देवराज देवेन्द्र शक्र सावद्य भाषा भी बोलता है, अनवद्य भाषा भी बोलता है ?
गौतम ! जब देवराज देवेन्द्र शक्र सूक्ष्मकाय का निर्यूहण किए बिना बोलता है, तब देवराज देवेन्द्र शक्र सावद्य भाषा बोलता है । जब देवराज देवेन्द्र शक्र सूक्ष्मकाय का निर्यूहण कर बोलता है, तब देवराज देवेन्द्र शक्र निरवद्य भाषा बोलता है। गौतम ! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है- देवराज देवेन्द्र शक्र सावद्य भाषा भी बोलता है, अनवद्य भाषा भी बोलता है। ४०. भंते! देवराज देवेन्द्र शक्र क्या भवसिद्धिक है ? अभवसिद्धिक है ? सम्यग् -दृष्टि है ? मिथ्या-दृष्टि है? परित संसारी है ? अनंत-संसारी है ? सुलभ-बोधि है ? दुर्लभ - बोधि है ? आराधक है ? विराधक है ? चरम है ? अचरम है ?
गौतम ! देवराज देवेन्द्र शक्र भवसिद्धिक है, अभवसिद्धिक नहीं है। सम्यग् - दृष्टि है, मिथ्यादृष्टि नहीं है। परित-संसारी है, अनन्त-संसारी नहीं है। सुलभ बोधि है, दुर्लभ - बोधि नहीं है। आराधक है, विराधक नहीं है। चरम है, अचरम नहीं है । इस प्रकार मोक उद्देशक (भ. ३/ ७२-७३) में सनत्कुमार की भांति वक्तव्यता यावत् अचरम नहीं है।
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