Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १६ : उ. १ : सू. ६-१४ डालता है तब तक वह पुरुष कायिकी यावत् प्राणातिपात - क्रिया-पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से लोह निष्पन्न हुआ है, लोहे का कोठा निष्पन्न हुआ है, संडासी निष्पन्न हुई है, अंगारे निष्पन्न हुए हैं, अंगारा निकालने वाली ईषत् वक्र लोहमयी यष्टि निष्पन्न हुई है, धौंकनी निष्पन्न हुई है, वे जीव भी कायिकी यावत् प्राणातिपात क्रिया - पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं ।
७. भंते! लोहे के कोठे से लोहमय संडासी से तप्त लोह को लेकर अधिकरण में निकालता अथवा डालता हुआ पुरुष कितनी क्रियाओं से स्पृष्ट होता है ?
गौतम ! जब तक पुरुष लोहे के कोठे से लोहमय संडासी से लोह को निकालकर अधिकरणी में निकालता अथवा डालता है तब तक वह पुरुष कायिकी यावत् प्राणातिपात क्रिया-पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। जिन जीवों के शरीर से लोह निष्पन्न हुआ, संडासी निष्पन्न हुई, घन निष्पन्न हुआ, हथौड़ा निष्पन्न हुआ, अहरन निष्पन्न हुई, अहरन की लकड़ी निष्पन्न हुई, उदक- द्रोणी निष्पन्न हुई, अधिकरण- शाला निष्पन्न हुई, वे जीव भी कायिकी यावत् प्राणातिपात-क्रिया-पांचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं ।
अधिकरणी-अधिकरण-पद
८. भंते! क्या जीव अधिकरणी है ? अधिकरण है ?
गौतम! जीव अधिकरणी भी है, अधिकरण भी है ।
९. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-जीव अधिकरणी भी है, अधिकरण भी है ? गौतम ! अविरति की अपेक्षा । इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-जीव अधिकरणी भी है, अधिकरण भी है।
१०. भंते! क्या नैरयिक अधिकरणी है ? अधिकरण है ?
गौतम ! अधिकरणी भी है, अधिकरण भी है। इस प्रकार जैसे जीव, वैसे ही नैरयिक की
वक्तव्यता । इस प्रकार निरन्तर यावत् वैमानिक की वक्तव्यता ।
११. भंते! क्या जीव अधिकरणी सहित है ? अधिकरणी-रहित है ?
गौतम ! अधिकरणी - सहित है, अधिकरणी-रहित नहीं है ।
१२. यह किस अपेक्षा से - पृच्छा ।
गौतम ! अविरति की अपेक्षा । इस अपेक्षा से यावत् अधिकरणी-रहित नहीं है । इस प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता ।
१३. भंते! क्या जीव आत्म-अधिकरणी है ? पर अधिकरणी है ? तदुभय- अधिकरणी है ? गौतम! आत्म-अधिकरणी भी है, पर अधिकरणी भी है, तदुभय- अधिकरणी भी है ।
१४. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - यावत् तदुभय अधिकरणी भी है ?
गौतम! अविरति की अपेक्षा । इस अपेक्षा से यावत् तदुभय-अधिकरणी भी है। इस प्रकार यावत् वैमानिक की वक्तव्यता ।
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