Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १४ : उ. ८ : सू. १०९,१११ प्रत्याख्यान किया। संप्रति हम श्रमण भगवान् महावीर की साक्ष्य से सर्व-प्राणातिपात का यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान करते हैं, सर्व-मृषावाद का यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान करते हैं, सर्व-अदत्तादान का यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान करते हैं, सर्व-मैथुन का यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान करते हैं, सर्व-परिग्रह का यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान करते हैं। सर्व क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेय, द्वेष, कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद, अरतिरति, मायामृषा, मिथ्या-दर्शन-शल्य और अकरणीय योग का यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान करते हैं। सर्व अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य-चारों प्रकार के आहार का यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान करते हैं। यह शरीर इष्ट, कांत, प्रिय, मनोज्ञ, मनोहर, स्थिरतर, विश्वसनीय, सम्मत, बहुमत, अनुमत
और आभरण-करण्डक के समान है। इसे सर्दी न लगे, गर्मी न लगे, भूख न सताए, प्यास न सताए, चोर पीड़ा न पहुंचाए, हिंस्र पशु इस पर आक्रमण न करे, दंश और मशक इसे न काटे, वात, पित्त, श्लेष्म और संनिपात-जनित विविध प्रकार के रोग और आतंक तथा परीषह और उपसर्ग इसका स्पर्श न करें, इसलिए इसको भी हम अंतिम उच्छ्वास-निःश्वास तक छोड़ते हैं। ऐसा कर संलेखना की आराधना में स्थित हो भक्त-पान का प्रत्याख्यान कर प्रायोपगमन की अवस्था में मृत्यु की आकांक्षा नहीं करते हुए रहते हैं। उन परिव्राजकों ने अनशन के द्वारा बहु भक्त का छेदन किया, छेदन कर आलोचना और प्रतिक्रमण कर समाधिपूर्ण दशा में कालमास में काल को प्राप्त कर ब्रह्मलोक-कल्प में देव के रूप में उपपन्न हुए। वहीं उनकी गति, वहीं उनकी स्थिति और वहीं उनका उपपात प्रज्ञप्त है। भंते! उन देवों की कितने काल की स्थिति प्रज्ञप्त है? गौतम! दस सागरोपम की स्थिति प्रज्ञप्त है। भंते! उन देवों के ऋद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य और पुरुषकार-पराक्रम है? हां, है। भंते! वे देव परलोक के आराधक हैं? हां, है। अम्मड-चर्या-पद ११०. भंते! बहुत लोग परस्पर इस प्रकार का आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं अम्मड परिव्राजक कंपिलपुर नगर के सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है। भंते! यह कैसे है? गौतम! जो बहुत लोग परस्पर इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करते हैं अम्मड परिव्राजक कंपिलपुर नगर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है। यह अर्थ सत्य है। गौतम! मैं भी इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन और प्ररूपण करता हूं-अम्मड परिव्राजक कंपिलपुर नगर के सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है। १११. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है-अम्मड परिव्राजक कंपिलपुर नगर में सौ घरों
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