Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १५ : सू. ६४-७० वैश्यायन तत्काल आवेश में आ गया, रुष्ट हो गया, कुपित हो गया, उसका रूप रौद्र हो गया, क्रोध की अग्नि में प्रदीप्त होकर आतापन-भूमि से नीचे उतरा, नीचे उतर कर तैजस-समुद्घात से समवहत हुआ, समवहत होकर सात-आठ पैर पीछे सरका, पीछे सरक कर मंखलिपुत्र गोशाल के वध के लिए अपने शरीर से तेज को निकाला। ६५. गौतम! मैंने मंखलिपुत्र गोशाल की अनुकंपा के लिए बाल-तपस्वी वैश्यायन की उष्ण तेजो-लेश्या को प्रतिसंहत करने के लिए गोशाल तक तेजो-लेश्या पहुंचे, उससे पूर्व शीतल तेजो-लेश्या को निकाला। मेरी शीतल तेजो-लेश्या से बाल-तपस्वी वैश्यायन की उष्ण तेजो-लेश्या प्रतिहत हो गई। ६६. बाल-तपस्वी वैश्यायन ने मेरी शीतल तेजो-लेश्या से अपनी उष्ण तेजो-लेश्या को प्रतिहत जानकर, मंखलिपुत्र गोशाल के शरीर का किञ्चित् आबाध, व्याबाध, अथवा छविच्छेद न करते हुए देखकर अपनी उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिसंहरण किया, प्रतिसंहरण कर इस प्रकार बोला-भगवन्! मैंने जान लिया, भगवन्! मैंने जान लिया, जान लिया! ६७. मंखलिपुत्र गोशाल ने इस प्रकार कहा-भंते ! इस जूओं के शय्यातर ने आपको इस प्रकार
कैसे कहा-भगवन् ! मैंने जान लिया, भगवन् ! मैंने जान लिया? जान लिया? ६८. गौतम ! मैंने मंखलिपुत्र गोशाल से इस प्रकार कहा-गोशाल! तुमने बाल-तपस्वी वैश्यायन
को देखा, देखकर मेरे पास से धीरे-धीरे पीछे सरक गए, जहां बाल-तपस्वी वैश्यायन था, वहां आए, आकर बाल-तपस्वी वैश्यायन को इस प्रकार कहा-क्या तुम मुनि हो, पिशाच हो अथवा जूओं के शय्यातर? बाल-तपस्वी वैश्यायन ने तुम्हारे इस अर्थ को आदर नहीं दिया, स्वीकार नहीं किया, वह मौन रहा। गोशाल! तुमने बाल-तपस्वी वैश्यायन को दूसरी बार भी, तीसरी बार भी इस प्रकार कहा-क्या तुम मुनि हो? पिशाच हो? अथवा जूओं के शय्यातर? तुम्हारे दूसरी बार, तीसरी बार इस प्रकार कहने पर बाल-तपस्वी वैश्यायन तत्काल आवेश में आ गया यावत् पीछे सरका, सरक कर तुम्हारे वध के लिए शरीर से तेजो-लेश्या को निकाला। गोशाल! मैंने तुम्हारी अनुकंपा के लिए बाल-तपस्वी वैश्यायन की उष्ण तेजो-लेश्या का प्रतिसंहरण करने के लिए, वह तुम्हारे शरीर तक पहुंचे, उससे पूर्व शीतल तेजो-लेश्या को निकाला। मेरी शीतल तेजो-लेश्या से बाल-तपस्वी वैश्यायन की उष्ण तेजो-लेश्या प्रतिहत हो गई। बाल-तपस्वी वैश्यायन ने मेरी शीतल तेजो-लेश्या के द्वारा अपनी उष्ण तेजो-लेश्या को प्रतिहत जानकर, तुम्हारे शरीर में किञ्चित् आबाध, व्याबाध अथवा छविच्छेद न करते हुए देखकर अपनी उष्ण तेजोलेश्या का प्रतिसंहरण किया, प्रतिसंहरण कर मुझे इस प्रकार कहा-भगवन् ! मैंने जान लिया, भगवन् ! मैंने जान लिया, जान लिया। ६९. मंखलिपुत्र गोशाल मेरे पास इस अर्थ को सुनकर, अवधारण कर भीत और प्रकम्पित हो गया, उसके कंठ प्यास से सूख गये। वह उद्विग्न और भय से व्याकुल हो गया। उसने मुझे वंदन-नमस्कार किया, वंदन-नमस्कार कर इस प्रकार कहा-भगवन्! संक्षिप्त विपुल तेजो-लेश्या वाला कैसे होता है? ७०. गौतम! मैंने मंखलिपुत्र गोशाल से इस प्रकार कहा-गोशाल! एक मुट्ठीभर कुल्माष-पिण्डिका खाता है, एक चुल्लु पानी पीता है, निरंतर बेले-बेले की तपस्या करता है,
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