Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १५ : सू. १५५-१६१
१५५. सिंह अनगार ने गृहस्वामिनी रेवती से इस प्रकार कहा-देवानुप्रिय! श्रमण भगवान् महावीर के लिए तुमने दो कपोत-शरीर अर्थात् मकाय के फल पकाए हैं, वे प्रयोजनीय नहीं हैं। तुमने कल जो अन्य बासी रखा हुआ, मार्जारकृत अर्थात् चित्रक वनस्पति से भावित
कुक्कुटमांस अर्थात् चौपतिया शाक है, वह लाओ, वह प्रयोजनीय है। १५६. गृहस्वामिनी रेवती ने सिंह अनगार से इस प्रकार कहा-सिंह! वह ऐसा ज्ञानी अथवा
तपस्वी कौन है जिसने मेरा यह रहस्यपूर्ण अर्थ बताया, जिससे यह तुम जानते हो? १५७. सिंह अनगार ने गृहस्वामिनी रेवती से इस प्रकार कहा-रेवती! मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान् महावीर उत्पन्न-ज्ञान-दर्शन के धारक, अर्हत्, जिन, केवली, अतीत, वर्तमान और भविष्य के विज्ञाता, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हैं। उन्होंने मुझे तुम्हारा यह रहस्यपूर्ण अर्थ बताया, जिससे यह मैं जानता हूं। १५८. गृहस्वामिनी रेवती सिंह अनगार के पास इस अर्थ को सुनकर, अवधारणकर हृष्ट-तुष्ट
हो गई। जहां भोजनगृह था, वहां आई, आकर चौपतिया शाक वाला बर्तन निकाला, निकालकर जहां सिंह अनगार था, वहां आई, वहां आकर सिंह अनगार के पात्र में वह सर्व
चौपतिया शाक सम्यक् रूप से निसर्जित किया। १५९. गृहस्वामिनी रेवती ने द्रव्य शुद्ध, दाता शुद्ध, प्रतिग्राहक शुद्ध-त्रिविध, त्रिकरण शुद्ध दान
के द्वारा सिंह अनगार को प्रतिलाभित कर देवायुष्य का निबंध किया, संसार को परीत किया, उसके घर ये पांच दिव्य प्रकट हुए, जैसे-रत्नों की धारा निपात-वृष्टि, पांच वर्ण वाले फूलों की वृष्टि, ध्वजा फहराने लगी, देव-दुन्दुभियां बजी, आकाश के अंतराल में 'अहो! दानम्
अहो! दानम्' की उद्घोषणा हुई। १६०. राजगृह नगर के शृंगाटकों, तिराहों, चौराहों, चौहटों, चार द्वार वाले स्थानों, राजमार्गों
और मार्गों पर बहुजन इस प्रकार आख्यान, भाषण, प्रज्ञापन एवं प्ररूपणा करते हैं-देवानुप्रियो! गृहस्वामिनी रेवती धन्या है, देवानुप्रियो! गृहस्वामिनी रेवती कृतार्थ है, देवानुप्रियो! गृहस्वामिनी रेवती कृतपुण्या है। देवानुप्रियो! गृहस्वामिनी रेवती कृतलक्षणा है। देवानुप्रियो! गृहस्वामिनी रेवती ने इहलोक और परलोक-दोनों को सुधार लिया है। देवानुप्रियो ! गृहस्वामिनी ने मनुष्य जन्म और जीवन का फल अच्छी तरह से प्राप्त किया है, जिसके घर में तथारूप साधु के साधु रूप में प्रतिलाभित होने पर ये पांच दिव्य प्रकट हुए, जैसे-रत्नों की धारा निपात-वृष्टि यावत् 'अहो! दानम् अहो! दानम्' की उद्घोषणा। इसलिए वह धन्या, कृतार्था, कृतपुण्या और कृतलक्षणा है। उसने इहलोक और परलोक दोनों को सुधारा है। गृहस्वामिनी रेवती ने मनुष्य जन्म और जीवन का फल अच्छी तरह से प्राप्त किया
है।
१६१. सिंह अनगार ने गृहस्वामिनी के घर से प्रतिनिष्क्रमण किया, प्रतिनिष्क्रमण कर मेंढ़िय
-ग्राम नगर के बीचोंबीच निर्गमन किया, निर्गमन कर गौतम स्वामी की भांति यावत् भक्त-पान दिखलाया, दिखलाकर श्रमण भगवान् महावीर के हाथ में उस सर्व (चौपतिया शाक) का निसर्जन किया।
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