Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १५ : सू. १४७-१५१ सिंह का मानसिक-दुःख-पद १४७. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर का अंतेवासी सिंह नाम का
अनगार-प्रकृति से भद्र यावत् विनीत। मालुकाकच्छ से न अति दूर और न अति निकट निरन्तर षष्ठ-षष्ठ भक्त (दो-दो दिन के उपवास) तपः-कर्म में आतापन-भूमि में दोनों भुजाएं
ऊपर उठाकर सूर्य के सामने आतापना लेते हुए विहार कर रहा था। १४८. ध्यानांतर में वर्तमान सिंह अनगार के इस प्रकार का आध्यात्मिक, स्मृत्यात्मक,
अभिलाषात्मक, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ-मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान् महावीर के शरीर में विपुल रोग-आतंक प्रकट हुआ है-उज्ज्वल यावत् छद्मस्थ-अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त करेंगे। अन्यतीर्थिक भी इस प्रकार कहते हैं-छद्मस्थ-अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त होंगे यह इस प्रकार के महान मनोमानसिक दुःख से पराभूत होकर आतापन-भूमि से नीचे उतरा, उतरकर जहां मालुकाकच्छ था, वहां आया, आकर मालुकाकच्छ के भीतर-भीतर
अनुप्रवेश किया, अनुप्रवेश कर बाढ स्वर से 'कुहु-कुहु' शब्द करते हुए रुदन करने लगा। भगवान् द्वारा सिंह को आश्वासन-पद १४९. अयि आर्यो! श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों को आमंत्रित किया, आमंत्रित
कर इस प्रकार कहा–आर्यो! मेरा अंतेवासी सिंह नामक अनगार, प्रकृति भद्र यावत् विनीत मालुकाकच्छ के न अति दूर और न अति निकट निरंतर षष्ठ-षष्ठ-भक्त के तपः-कर्म में आतापन-भूमि में दोनों भुजाएं ऊपर उठाकर, सूर्य के सामने आतापना लेते हुए विहार कर रहा है। ध्यानांतर में वर्तमान उस सिंह अनगार के इस प्रकार का आध्यात्मिक, स्मृत्यात्मक, अभिलाषात्मक, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ-मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवान् महावीर के शरीर में विपुल रोग-आतंक प्रकट हुआ है-उज्ज्वल यावत् छद्मस्थ-अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त करेंगे। अन्यतीर्थिक यह कहते हैं-छद्मस्थ-अवस्था में मृत्यु को प्राप्त होंगे। यह इस प्रकार मनोमानसिक दुःख से अभिभूत होकर आतापन-भूमि से नीचे उतरा, उतरकर जहां मालुकाकच्छ था, वहां आया। आकर मालुकाकच्छ के भीतर-भीतर अनुप्रवेश किया, अनुप्रवेश कर बाढ स्वर से 'कुहु कुहु' शब्द करते हुए रुदन करने लगा।
इसलिए आर्यो! तुम जाओ, सिंह अनगार को बुलाओ। १५०. श्रमण भगवान् महावीर के इस प्रकार कहने पर श्रमण-निर्ग्रन्थों ने श्रमण भगवान् महावीर
को वंदन-नमस्कार किया, वंदन-नमस्कार कर श्रमण भगवान् महावीर के पास से शान कोष्ठक चैत्य से प्रतिनिष्क्रमण किया, प्रतिनिष्क्रमण कर जहां मालुकाकच्छ था, जहां सिंह
अनगार था वहां आए, आकर सिंह अनगार से इस प्रकार कहा-सिंह! धर्माचार्य बुलाते हैं। १५१. श्रमण-निर्ग्रन्थों के साथ सिंह अनगार ने मालुकाकच्छ से प्रतिनिष्क्रमण किया, प्रतिनिष्क्रमण कर जहां शान कोष्ठक चैत्य था, जहां श्रमण भगवान् महावीर थे, वहां आया, आकर श्रमण भगवान् महावीर को दायीं ओर से प्रारम्भ कर तीन बार प्रदक्षिणा यावत् पर्युपासना की।
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