Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १५ : सू. ९६-९८
हुए हैं ये श्रमण भगवान् महावीर ! श्रमण भगवान् महावीर ! इसलिए यदि आज से वे मुझे कुछ कहते हैं तो उन्हें तपः- तेज से एक ही प्रहार में कूटाघात की भांति मैं उसी प्रकार राख का ढेर कर दूंगा, जैसे उस सर्प के द्वारा ये वणिक । आनंद! मैं तुम्हारा संरक्षण और संगोपन करूंगा, जैसे उन वणिकों की हित कामना करने वाला यावत् निःश्रेयस की कामना करने वाले उस वणिक को अनुकंपा करने वाले ने भांड़ अमत्र - उपकरण सहित अपने नगर में पहुंचा दिया । इसलिए आनंद ! तुम जाओ, तुम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र को यह अर्थ कहो ।
आनंद स्थविर का भगवान् से निवेदन- पद
९७. आनन्द स्थविर मंखलिपुत्र गोशाल के इस प्रकार कहने पर भीत यावत् भय से व्याकुल हो गया। उसने मंखलिपुत्र गोशाल के पास से हालाहला कुंभकारी के कुंभकारापण से प्रतिनिष्क्रमण किया, प्रतिनिष्क्रमण कर शीघ्र त्वरित गति से श्रावस्ती नगरी के बीचोंबीच निर्गमन किया, निर्गमन कर जहां कोष्ठक चैत्य था, जहां श्रमण भगवान् महावीर थे, वहां आया, आकर श्रमण भगवान् को दांयी ओर से प्रारम्भ कर तीन बार प्रदक्षिणा की, प्रदक्षिणा कर वंदन - नमस्कार किया, वंदन - नमस्कार कर इस प्रकार कहा- भंते! मैं बेले के पारण में आपकी अनुज्ञा से श्रावस्ती नगरी के उच्च, नीच तथा मध्यम कुलों में सामुदानिक भिक्षाचर्या के लिए घूमते हुए हालाहला कुंभकारी के कुंभकारापण से न अति दूर और न अति निकट जा रहा था। मंखलिपुत्र गोशाल ने हालाहला कुंभकारी के कुंभकारापण से न अति दूर और न अति निकट मुझे जाते हुए देख कर इस प्रकार कहा - आनंद ! तुम यहां आओ, एक बड़ी उपमा को सुनो।
मंखिलपुत्र गोशाल के इस प्रकार कहने पर मैं जहां हालाहाल कुंभकारी का कुंभकारापण था जहां मंखलिपुत्र गोशाल था, वहां आया।
मंखलिपुत्र गोशाल ने इस प्रकार कहा - चिर अतीत काल में कुछ उच्च तथा निम्न वणिक इस प्रकार पूर्ववत् सर्व निरवशेष वक्तव्य है यावत् अपने नगर पहुंचा दिया। इसलिए आनन्द ! तुम जाओ तुम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र को यह अर्थ कहो ।
९८. भंते! क्या मंखलिपुत्र गोशाल अपने तपः तेज से एक प्रहार में कूटाघात की भांति राख का ढेर करने में प्रभु है ? भंते! क्या तपः तेज से एक प्रहार में कूटाघात की भांति राख का ढेर करना मंखलिपुत्र गोशाल का विषय है ? क्या मंखलिपुत्र गोशाल तपः- तेज से एक प्रहार में कूटाघात की भांति राख का ढेर करने में समर्थ है ?
आनन्द ! मंखलिपुत्र गोशाल अपने तपः- तेज में एक प्रहार में कूटाघात की भांति राख का ढेर करने में प्रभु है । आनन्द ! अपने तपः- तेज से एक प्रहार कूटाघात की भांति राख का ढेर करना मंखलिपुत्र गोशाल का विषय है। आनन्द ! मंखलिपुत्र गोशाल अपने तपः तेज से एक प्रहार में कूटाघात की भांति राख का ढेर करने में समर्थ है। किन्तु वह अर्हत् भगवान् को एक प्रहार में कूटाघात की भांति राख का ढेर नहीं कर सकता, वह उन्हें परितापित कर सकता है। आनन्द ! मंखलिपुत्र गोशाल का जितना तपः- तेज है, उससे अनन्त - गुण विशिष्टतर तपः - तेज अनगार भगवान् का है, अनगार भगवान् क्षांतिक्षम होते हैं। आनन्द ! अनगार भगवान् का
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