Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १५ : सू. १३२-१३९
चार पानकों और चार अपानकों की प्रज्ञापना की है।
वह पानक क्या है ? पानक यावत् उसके पश्चात् सिद्ध होता है, यावत् सब दुःखों का अंत करता है ।
भगवती सूत्र
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अयंपुल ! इसलिए तुम जाओ । ये ही तुम्हारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक मंखलिपुत्र गोशाल यह इस प्रकार का व्याकरण करेंगे।
१३३. आजीवक-उपासक अयंपुल आजीवक स्थविरों के इस प्रकार कहने पर हृष्ट-तुष्ट होकर उठने की मुद्रा में उठा । उठकर जहां मंखलिपुत्र गोशाल था, वहां जाने के लिए तत्पर हुआ । १३४. आजीवक-स्थविरों ने मंखलिपुत्र गोशाल को एकांत में आम्रफल को फेंकने के लिए संकेत किया ।
१३५. मंखलिपुत्र गोशाल ने आजीवक- स्थविरों के संकेत को ग्रहण किया, ग्रहण कर आम्रफल को एकांत में फैंक दिया।
१३६. आजीवक-उपासक अयंपुल जहां मंखलिपुत्र गोशाल था, वहां आया, आकर मंखलिपुत्र गोशाल को तीन बार यावत् पर्युपासना की ।
१३७. अयंपुल ! मंखलिपुत्र गोशाल ने आजीवक - उपासक अयंपुल से इस प्रकार कहाअयंपुल ! पूर्वरात्र - अपररात्र काल समय में यावत् जहां मैं हूं वहां शीघ्र आए । अयंपुल ! यह अर्थ संगत है ?
हां, है ।
इसलिए यह आम्रफल नहीं, यह आम्र का छिलका है। हल्ला किस संस्थान वाली प्रज्ञप्त है ?
हल्ला बांस - मूल के संस्थान वाली प्रज्ञप्त । रे वीरो ! वीणा बजाओ । जाओ ।
वीरो ! वीणा
१३८. मंखलिपुत्र गोशाल के यह इस प्रकार का व्याकरण करने पर आजीवक - उपासक अयंपुल हृष्ट-तुष्ट चित्तवाला, आनंदित, नंदित, प्रीतिपूर्ण मन वाला, परम सौमनस्य - युक्त और हर्ष से विकस्वर - हृदय वाला हो गया। मंखलिपुत्र गोशाल को वंदन - नमस्कार किया, वंदननमस्कार कर प्रश्नों को पूछा। पूछ कर अर्थों को ग्रहण किया, ग्रहण कर उठने की मुद्रा में उठा । उठ कर मंखलिपुत्र गोशाल को वंदन - नमस्कार किया, वंदन - नमस्कार कर जिस दिशा से आया उसी दिशा में लौट गया।
गोशाल द्वारा अपनी मरणोत्तर क्रिया का निर्देश - पद
१३९. मंखलिपुत्र गोशाल ने अपने मरण को जान कर आजीवक- स्थविरों को बुलाया, बुला कर इस प्रकार कहा— देवानुप्रियो ! तुम मुझे मृत्यु को प्राप्त जान कर सुरभित गंधोदक से स्नान करवाना, स्नान करा कर रोएंदार सुकुमार गंध-वस्त्र से शरीर को पौंछना, पौंछकर सरस गोशीर्ष चंदन का गात्र पर अनुलेप करना । अनुलेप कर बहुमूल्य अथवा महापुरुष योग्य हंसलक्षण वाला पट- शाटक पहनाना। पहनाकर सर्व अलंकारों से विभूषित करना, विभूषित
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