Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
भगवती सूत्र
श. १५ : सू. ८७-९१ के पास इस अर्थ को स्वीकार किया, स्वीकार कर उस विशाल बस्ती-शून्य यावत् अटवी में चारों ओर जल की मार्गणा-गवेषणा करते हुए एक विशाल वनषंड को प्राप्त किया-कृष्ण, कृष्ण अवभास वाला, यावत् काली कजरारी घटा से समान चित्त को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय। उस वनषंड के बहु मध्य देश भाग में एक बड़ा वल्मीक (बांबी) मिला। उस वल्मीक (बांबी) के चार ऊंचे और जटा-शटा वाले शिखर थे; वे मध्य भाग में स्वल्प विस्तार वाले थे, निम्न भाग में वे सर्प के अर्द्ध रूप वाले, अर्द्ध सर्पाकार संस्थान से संस्थित, चित्त को प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय थे। ८८. वणिकों ने हृष्ट-तुष्ट होकर एक दूसरे को बुलाया, बुलाकर इस प्रकार कहा–देवानुप्रियो! हमने इस विशाल बस्ती-शून्य, जल-रहित, आवागमन-रहित प्रलंब मार्ग वाली अटवी में जल के चारों ओर मार्गणा-गवेषणा करते हुए इस वनषंड को प्राप्त किया-कृष्ण, कृष्ण अवभास वाला। इस वनषंड के बहुमध्यदेश भाग में इस वल्मीक को प्राप्त किया। इस वल्मीक के चार ऊंचे और जटा-शटा वाले शिखर हैं, वे मध्य भाग में स्वल्प विस्तार वाले, निम्न भाग में सर्प के अर्द्ध रूप वाले. अर्द्ध सर्पाकार संस्थान से संस्थित. चित्त को प्रसन्न करने वाले, दर्शनीय, कमनीय और रमणीय हैं, इसलिए देवानुप्रिय! हमारे लिए यह श्रेय है कि हम इस वल्मीक के प्रथम शिखर का भेदन करें। इससे हम प्रधान जल-रत्न को प्राप्त
करेंगे। ८९. वणिकों ने एक दूसरे के पास इस अर्थ को स्वीकार किया, स्वीकार कर उस वल्मीक के प्रथम शिखर का भेदन किया। उन्होंने वहां स्वच्छ, पथ्य, जात्य, हल्का और स्फटिक वर्ण की आभा वाले प्रधान जल-रत्न को प्राप्त किया। उन वणिकों ने हृष्ट-तुष्ट होकर जल को पीया, पीकर बैलों को पिलाया, पिलाकर जल-पात्रों को जल से भरा, भर कर दूसरी बार एक दूसरे से इस प्रकार कहा-देवानुप्रियो! हमने इस वल्मीक के प्रथम शिखर को भेदकर प्रधान जल-रत्न प्राप्त किया, इसलिए देवानुप्रियो! हमारे लिये यह श्रेय है कि हम इस
वल्मीक के दूसरे शिखर का भेदन कर वहां प्रधान स्वर्ण-रत्न प्राप्त करेंगे। ९०. वणिकों ने एक दूसरे के पास इस अर्थ को स्वीकार किया, स्वीकार कर उस वल्मीक के दूसरे शिखर का भेदन किया। वहां स्वच्छ, जात्य, ताप को सहन करने वाला, महान् अर्थ वाला, महान मूल्य वाला, महान अर्हता वाला और प्रधान स्वर्ण-रत्न प्राप्त किया। वणिकों ने हृष्ट-तुष्ट होकर पात्रों को भरा, भरकर वाहनों को भरा, भरकर तीसरी बार भी एक दूसरे से इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो! हमने इस वल्मीक के पहले शिखर का भेदन कर प्रधान जल-रत्न को प्राप्त किया। दूसरे शिखर का भेदन कर प्रधान स्वर्ण-रत्न को प्राप्त किया। इसलिए देवानुप्रियो! हमारे लिए श्रेय है कि हम इस वल्मीक के तीसरे शिखर का भी भेदन
करें। यहां हम प्रधान मणि-रत्न प्राप्त करेंगे। ९१. वणिकों ने एक दूसरे के पास इस अर्थ को स्वीकार किया, स्वीकार कर उस वल्मीक के तीसरे शिखर का भेदन किया, वहां विमल, निर्मल, निस्तल (गोलाकर), दूषण-रहित, महान् अर्थ वाला, महान् मूल्य वाला, महान् अर्हता वाला और प्रधान मणि-रत्न प्राप्त किया।