Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १४ : उ. ८ : सू. १०८,१०९
भगवती सूत्र १०८. वे परिव्राजक उस विशाल, वस्ती-शून्य, आवागमन-रहित तथा प्रलंब मार्ग वाली अटवी में कुछ दूरवर्ती प्रदेश में चले गए। पहले जो जल था, उसे पीते गए, पीते गए, आखिर वह
समाप्त हो गया। १०९. जल के समाप्त हो जाने पर प्यास से अभिभूत हो गए। उन्हें कोई जल को देने वाला दिखाई नहीं दिया। परिव्राजकों ने एक दूसरे को बुलाया, बुलाकर इस प्रकार कहा-देवानुप्रियो! इस विशाल, वस्ती-शून्य, आवागमन-रहित तथा प्रलंब मार्ग वाली अटवी में कुछ दूरवर्ती प्रदेश में आ गए हैं। पहले लिया हुआ जो जल था, वह पीते गए, पीते गए। आखिर वह समाप्त हो गया है। देवानप्रिय! यह श्रेय है कि हम इस विशाल. वस्ती-शन्य, आवागमन-रहित प्रलंब मार्ग वाली अटवी में किसी जल लेने की अनुमति देने वाले की चारों ओर मार्गणा-गवेषणा करें। इस प्रकार एक-दूसरे के पास इस अर्थ को सुना, सुनकर उस विशाल, वस्ती-शून्य, आवागमन-रहित प्रलंब मार्ग वाली अटवी में जल लेने की अनुमति देने वाले व्यक्ति की चारों ओर मार्गणा-गवेषणा की। मार्गणा-गवेषणा करने पर, जल देने वाले व्यक्ति के न मिलने पर दूसरी बार पुनः एक-दूसरे को बुलाया, बुलाकर इस प्रकार कहा–देवानुप्रियो! यहां कोई जल लेने की अनुमति देने वाला नहीं है। हमें अदत्त ग्रहण करना नहीं कल्पता, अदत्त का अनुमोदन करना नहीं कल्पता, इसलिए हम इस आपत्-काल में भी अदत्त जल का ग्रहण न करें, अदत्त जल का अनुमोदन न करें, जिससे कि हमारे तप का लोप न हो। देवानुप्रियो! हमारे लिए यह श्रेय है कि हम त्रिदंड, कमण्डलु, रूद्राक्ष-माला, मृत्पात्र, आसन, केसरिका (पात्र-प्रमार्जन का वस्त्र-खण्ड), टिकठी, अंकुश, छलनी, कलाई पर पहना जाने वाला रुद्राक्ष-आभरण. छत्र. पदत्राण और गेरुएं वस्त्र को एकान्त में डाल दें. गंगा महानदी का अवगाहन कर, बालुका-संस्तारक बिछाकर संलेखना की आराधना में स्थित हो, भक्त-पान का प्रत्याख्यान कर प्रायोपगमन-अनशन की अवस्था में मृत्यु की आकांक्षा न करते हुए रहें-इस प्रकार एक दूसरे के पास इस अर्थ को सुना, सुनकर त्रिदंड, कमण्डलु, रूद्राक्ष-माला, मृत्पात्र, आसन, केसरिका, टिकठी, अंकुश, छलनी, कलाई पर पहना जाने वाला रुद्राक्ष आभरण, छत्र, पदत्राण और गेरुएं वस्त्र को एकान्त में डालते हैं, गंगा महानदी का अवगाहन कर बालुका का बिछौना बिछाते हैं, बिछाकर बालुका के बिछौने पर आरूढ होते हैं. आरूढ होकर पर्व की ओर मंह कर पर्यंकासन में बैठकर. हथेलियों से संपट आकार वाली अंजलि को सिर के सम्मुख घुमा कर इस प्रकार बोलेनमस्कार हो अर्हत् यावत् सिद्धि-गति नाम वाले स्थान को संप्राप्त जिनवरों को। नमस्कार हो भगवान् महावीर यावत् सिद्धि-गति प्राप्त करने वाले जिनवर को। नमस्कार हो हमारे धर्माचार्य धर्मोपदेशक अम्मड़ परिव्राजक को। पहले हमने अम्मड़ परिव्राजक के पास स्थूल-प्राणातिपात का यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान किया, मृषावाद और अदत्तादान का यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान किया, सर्व-मैथुन का यावज्जीवन के लिए प्रत्याख्यान किया, स्थूल-परिग्रह का यावज्जीवन के लिए
करम
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