Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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श. १४ : उ. ९,१० : सू. १३६-१४२
भगवती सूत्र सात मास-पर्याय वाला श्रमण-निग्रंथ सनत्कुमार-माहेन्द्र-देवों की तेजो-लेश्या का व्यतिक्रमण करता है। आठ मास-पर्याय वाला श्रमण-निग्रंथ ब्रह्मलोक-लांतक-देवों की तेजो-लेश्या का व्यतिक्रमण करता है। नौ मास-पर्याय वाला श्रमण-निग्रंथ महाशुक्र-सहस्रार-देवों की तेजो-लेश्या का व्यतिक्रमण करता है। दस मास-पर्याय वाला श्रमण-निग्रंथ आनत, प्राणत, आरण और अच्युत-देवों की तेजोलेश्या का व्यतिक्रमण करता है। ग्यारह मास-पर्याय वाला श्रमण-निग्रंथ ग्रैवेयक-देवों की तेजो-लेश्या का व्यतिक्रमण करता
है।
बारह मास-पर्याय वाला श्रमण-निग्रंथ अनुत्तरोपपातिक-देवों की तेजो-लेश्या का व्यतिक्रमण करता है। उससे आगे शुक्ल, शुक्लाभिजात होकर उसके पश्चात् सिद्ध, प्रशान्त, मुक्त और परिनिर्वृत होता है, सब दुःखों का अंत करता है। १३७. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। यावत् विहरण करने लगे।
दसवां उद्देशक केवलि-पद १३८. भंते! क्या केवली छद्मस्थ को जानता-देखता है?
हां, जानता-देखता है। १३९. भंते! जैसे केवली छद्मस्थ को जानता-देखता है, वैसे सिद्ध भी छद्मस्थ को जानता-देखता है?
हां, जानता-देखता है। १४०. भंते! केवली आधोवधिक को जानता-देखता है?
पूर्ववत्। इसी प्रकार केवली परमाधोवधिक को जानता-देखता है। इसी प्रकार केवली को जानता-देखता है। इसी प्रकार सिद्ध को जानता-देखता है यावत्। १४१. भंते! जैसे केवली सिद्ध को जानता-देखता है, वैसे सिद्ध भी सिद्ध को जानता-देखता
हां, जानता-देखता है। १४२. भंते! क्या केवली बोलते हैं? व्याकरण करते हैं? हां, बोलते हैं, व्याकरण करते हैं।
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