Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १२ : उ. १० : सू. २०४-२०९
इसी प्रकार जैसे कषाय- आत्मा की वक्तव्यता कही गई है वैसे ही योग- आत्मा की वक्तव्यता ऊपरवर्ती आत्माओं के साथ वक्तव्य है ।
जैसे द्रव्य - आत्मा की वक्तव्यता कही गई है वैसे ही उपयोग आत्मा की वक्तव्यता ऊपरवर्ती आत्माओं के साथ वक्तव्य है ।
जिसके ज्ञान - आत्मा है उसके दर्शन आत्मा नियमतः ज्ञान- आत्मा की भजना है।
। जिसके दर्शन - आत्मा है उसके
जिसके ज्ञान-आत्मा है उसके चरित्र-आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है। जिसके चरित्र-आत्मा है, उसके ज्ञान - आत्मा नियमतः है। ज्ञान आत्मा और वीर्य आत्मा - ये दोनों परस्पर भजनीय है। जिसके दर्शन - आत्मा है उसके उपरिवर्ती दो आत्मा - चरित्र आत्मा और वीर्य आत्मा की भजना है। जिसके चरित्र - और वीर्य - आत्मा हैं, उसके दर्शन - आत्मा नियमतः है। जिसके चरित्र-आत्मा है, उसके वीर्य आत्मा नियमतः है। जिसके वीर्य आत्मा है उसके चरित्र-आत्मा स्यात् है, स्यात् नहीं है ।
अष्टविध-आत्मा का अल्पबहुत्व-पद
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२०५. भंते! द्रव्य - आत्मा, कषाय-आत्मा यावत् वीर्य आत्मातुल्य अथवा विशेषाधिक है ?
- इनमें कौन किनसे अल्प, बहु,
गौतम ! सबसे अल्प चरित्र-आत्मा, ज्ञान- आत्मा उससे अनंत-गुणा अधिक, कषाय-आत्मा उससे अनंत-गुणा अधिक, योग- आत्मा उससे विशेषाधिक, वीर्य आत्मा उससे विशेषाधिक, उपयोग-आत्मा, द्रव्य-आत्मा और दर्शन-आत्मा - ये तीनों वीर्य आत्मा से विशेषाधिक और परस्पर तुल्य हैं ।
ज्ञान-दर्शन का आत्मा के साथ भेदाभेद-पद
२०६. भंते ! आत्मा ज्ञान है ? अथवा आत्मा से भिन्न कोई ज्ञान है ?
गौतम ! आत्मा स्यात् ज्ञान है, स्यात् अज्ञान है। ज्ञान नियमतः आत्मा है ।
२०७. भंते ! क्या नैरयिकों की आत्मा ज्ञान है ? अथवा नैरयिकों की आत्मा से भिन्न कोई ज्ञान है ?
गौतम ! नैरयिकों की आत्मा स्यात् ज्ञान है, स्यात् अज्ञान है। उनका ज्ञान नियमतः आत्मा है। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार देवों की वक्तव्यता ।
२०८. भंते ! पृथ्वीकायिक- जीवों की आत्मा अज्ञान है ? पृथ्वीकायिक जीवों की आत्मा से भिन्न कोई अज्ञान है ?
गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों की आत्मा नियमतः अज्ञान है, उनका अज्ञान भी नियमतः आत्मा है।
इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीवों की वक्तव्यता । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय यावत् वैमानिक देवों की नैरयिकों की भांति वक्तव्यता ।
२०९. भंते ! क्या आत्मा दर्शन है ? क्या आत्मा से भिन्न कोई दर्शन है ?
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