Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
५५. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है- कोई जाता है, कोई नहीं जाता ?
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गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे - विग्रह - गति - समापन्नक और अविग्रह - गति-समापन्नक-नरक में अवस्थित । उनमें जो विग्रह गति समापन्नक नैरयिक हैं, वे अग्निकाय के बीचोंबीच होकर जाते हैं।
श. १४ : उ. ५ : सू. ५५-६०
क्या वह अग्निकाय में जलता है ?
यह अर्थ संगत नहीं है । वह शस्त्र से आक्रांत नहीं होता ।
जो अविग्रह - गति - समापन्नक नैरयिक हैं, वे अग्निकाय के बीचोंबीच होकर नहीं जाते। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - यावत् कोई नैरयिक अग्निकाय के बीचोंबीच होकर नहीं
जाता ।
५६. भंते! क्या असुरकुमार अग्निकाय के बीचोंबीच होकर जाता है ?
गौतम ! कोई जाता है, कोई नहीं जाता।
५७. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है - यावत् कोई असुरकुमार अग्निकाय के बीचोंबीच होकर नहीं जाता ?
गौतम ! असुरकुमार दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे - विग्रह - गति - समापन्नक और अविग्रह - गति
-समापन्नक ।
जो विग्रह-गति-समापन्नक असुरकुमार हैं, वे नैरयिक की भांति वक्तव्य हैं, यावत् वह शस्त्र से आक्रांत नहीं होता ।
जो अविग्रह - गति - समापन्नक हैं, उनमें कोई अग्निकाय के बीचोंबीच होकर जाता है, कोई नहीं जाता।
जो बीचोंबीच होकर जाता है, क्या वह जलता है ?
यह अर्थ संगत नहीं है । वह शस्त्र से आक्रांत नहीं होता। इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है - यावत् कोई असुरकुमार अग्निकाय के बीचोंबीच होकर नहीं जाता। इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमार की वक्तव्यता । एकेन्द्रिय नैरयिक की भांति वक्तव्य हैं ।
५८. भंते! क्या द्वीन्द्रिय अग्निकाय के बीचोंबीच होकर जाता है ?
जैसे - असुरकुमार वैसे द्वीन्द्रिय की वक्तव्यता, इतना विशेष है - जो जाता है, क्या वह जलता है ?
हां, जलता है । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय की वक्तव्यता ।
५९. भंते! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक अग्निकाय के बीचोंबीच होकर जाता है ?
गौतम ! कोई जाता है, कोई नहीं जाता।
६०.
भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है ?
गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यक्योनिक दो प्रकार के प्रज्ञप्त हैं, जैसे-विग्रह - गति - समापन्नक और
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