Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
श. १४ : उ. ४,५ : सू. ४६-५४
भगवती सूत्र ४६. भंते! यह पुद्गल अनंत और शाश्वत अनागत में किसी एक समय रूक्ष होता है?
पूर्ववत्। ४७. भंते! यह स्कन्ध अनंत और शाश्वत अतीत में किसी एक समय रूक्ष होता है?
इसी प्रकार स्कन्ध भी पुद्गल की भांति वक्तव्य है। ४८. भंते! यह जीव अनंत और शाश्वत अतीत में किसी एक समय दुःखी होता है? किसी एक समय अदुःखी होता है? किसी एक समय दुःखी अथवा अदुःखी होता है? पूर्व में जो एक-भाव आदि परिणाम वाला है, वह करण के द्वारा अनेक-भाव, अनेक-भूत आदि परिणाम वाला हो जाता है? वह वेदनीय निर्जीर्ण होता है, उसके पश्चात् वह एक-भाव, एक-भूत-परिणाम वाला हो जाता है? हां गौतम! यह जीव अनंत और शाश्वत अतीत में किसी एक समय यावत् एक-भूत परिणाम वाला हो जाता है। इसी प्रकार शाश्वत वर्तमान में किसी एक समय में, इसी प्रकार
अनंत और शाश्वत अनागत में किसी एक समय में। ४९. भंते! परमाणु-पुद्गल क्या शाश्वत है? क्या अशाश्वत है?
गौतम! स्यात् शाश्वत है, स्यात् अशाश्वत है। ५०. भंते! यह किस अपेक्षा से कहा जा रहा है स्यात् शाश्वत है? स्यात् अशाश्वत है? गौतम! द्रव्य की दृष्टि से शाश्वत है। वर्ण-पर्यवों, गंध-पर्यवों, रस-पर्यवों और स्पर्श-पर्यवों की दृष्टि से अशाश्वत है। गौतम! इस अपेक्षा से यह कहा जा रहा है-परमाणु-पुद्गल स्यात् शाश्वत है, स्यात् अशाश्वत है। ५१. भंते! परमाणु-पुद्गल क्या चरम है? क्या अचरम है?
गौतम! द्रव्य की अपेक्षा चरम नहीं है, अचरम है। क्षेत्र की अपेक्षा स्यात् चरम है, स्यात् अचरम है। काल की अपेक्षा स्यात् चरम है, स्यात् अचरम है। भाव की अपेक्षा स्यात् चरम है, स्यात् अचरम है। ५२. भंते! परिणाम कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है?
गौतम! परिणाम दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे-जीव-परिणाम और अजीव- परिणाम। इस प्रकार परिणाम-पद (पण्णवणा, पद १३) निरवशेष वक्तव्य है। ५३. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है। यावत् विहरण करने लगे।
पांचवां उद्देशक
अग्नि का अतिक्रमण-पद ५४. भंते! क्या नैरयिक अग्निकाय के बीचोंबीच होकर जाता है?
गौतम! कोई जाता है, कोई नहीं जाता।
५२८