Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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भगवती सूत्र
श. १३ : उ. ७-९ : सू. १४४ - १५१
गौतम ! दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- निर्धारि, अनिर्धारि । यह नियमतः अप्रतिकर्म होता है ।
१४५. भंते! भक्त - प्रत्याख्यान कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ?
गौतम! दो प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे- निर्धारि, अनिर्धारि । यह नियमतः सप्रतिकर्म होता है। १४६. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है।
आठवां उद्देश
कर्म-प्रकृति-पद
१४७. भंते! कर्म-प्रकृतियां कितनी प्रज्ञप्त हैं ?
गौतम ! कर्म-प्रकृतियां आठ प्रज्ञप्त हैं। इस प्रकार बंध-स्थिति- उद्देशक पण्णवणा (पद २३) की भांति निरवशेष वक्तव्य है ।
१४८. भंते! वह ऐसा ही है। भंते! वह ऐसा ही है ।
नौवां उद्देशक
भावितात्म - विकिया- पद
१४९. राजगृह नगर यावत् गौतम ने इस प्रकार कहा - भंते! जैसे कोई पुरुष रज्जु से बंधी घटिका लेकर जाए, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार भी क्या हाथ में रज्जु से बंधी घटिका ले स्वयं कृत्यागत होकर (माया या विद्या का प्रयोग कर) ऊपर आकाश में उड़ता है ?
हां, उड़ता है।
१५०. भंते! भावितात्मा अनगार हाथ में रज्जु से बंधी घटिका ले, स्वयं कृत्यागत होकर कितने रूपों का निर्माण करने में समर्थ है ?
गौतम! जैसे कोई युवक युवती का हाथ प्रगाढता से पकड़ता है तथा गाड़ी के चक्के की नाभि आरों से युक्त होती है, उसी प्रकार भावितात्मा अनगार वैक्रिय-समुद्घात से समवहत होता है यावत् गौतम ! वह भावितात्मा अनगार संपूर्ण जंबूद्वीप- द्वीप को अनेक स्त्री रूपों से आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तृत (बिछौना सा बिछाया हुआ), संस्तृत (भली भांति बिछौना सा बिछाया हुआ), स्पृष्ट और अवगाढावगाढ ( अत्यन्त सघन रूप से व्याप्त) करने में समर्थ है। गौतम ! भावितात्मा अनगार की विक्रिया - शक्ति का यह इतना विषय केवल विषय की दृष्टि से प्रतिपादित है । भावितात्मा अनगार ने क्रियात्मक रूप न तो कभी ऐसी विक्रिया की, न करता है और न करेगा।
१५१. जैसे कोई पुरुष हिरण्य-पेटी को लेकर जाए, इसी प्रकार भावितात्मा अनगार हाथ में हिरण्य - पेटी को ले, कृत्यागत होकर ऊपर आकाश में उड़ता है ?
शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार स्वर्ण-पेटी, इसी प्रकार रत्न- पेटी, वज्र-पेटी, वस्त्र-पेटी, आभरण-पेटी, इसी प्रकार बांस की खपाचियों से बनी हुई चटाई अथवा टाटी, खस से बनी हुई टाटी,
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